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अन्वय-गुरूपास्तेः स्वाध्यायः वाचनैः शास्त्राध्ययनं स्यात् अस्मात् हेयोपादेयबोधः ततः कैवल्यसम्पदः॥४॥
अर्थ-गुरु की सेवा एवं उपासनासे स्वाध्याय वाचन करने से शास्त्रों का अध्ययन होता है इसी से त्याज्य एवं ग्राह्य अर्थात् विवेकाविवेक का बोध होता है जिससे कैवल्य की सम्पदा प्राप्त होती है।
सुदृष्टपरमार्थानां जंगमस्थावरात्मनाम् । सेवायात्रादिभिः कार्ये निर्मले ज्ञानदर्शने ॥ ५॥
अन्वय-सुदृष्टपरमार्थानां जंगमस्थावरात्मनाम् सेवायात्रादिभिः शानदर्शने निर्मले कार्ये ॥५॥ .
अर्थ-परमार्थ को देखे हुए जंगम तीर्थ साधु की सेवा तथा स्थावर तीर्थों की यात्रा से क्रमशः ज्ञान तथा दर्शन को निर्मल करना चाहिए ।
युक्ताहारविहाराद्यैः समितीनां प्रवर्तनः। / निवर्तनः कषायादे-र्ज्ञानाचरणमद्भुतम् ॥ ६ ॥
अन्वय-शानात् युक्ताहारविहाराद्यैः समितीनां प्रवर्तनैः कषायादेः निवर्तनैः चरणं अद्भुतम् ।। ६॥
अर्थ-उपयोग पूर्वक आहार विहार करने से, पांच समितियों को जीवन में उतारने से तथा कषायों को हटाने से चारित्र अद्भत होता है !
ज्ञानदर्शनचारित्रयोगाद्धर्मः स्फुटो भवेत् शैवः पन्था अयं सेव्यः सम्यक् तत्त्वविमर्शिना ॥ ७ ॥
अन्वय-ज्ञान-दर्शन-चारित्र-योगात् धर्मः स्फुटः भवेत् सम्यक् तत्वविमर्शिना अयं शैवः पन्था सेव्यः ॥ ७॥
अर्थ-ज्ञान दर्शन एवं चारित्र के योग से धर्म प्रकट होता है अतः सम्यक् ज्ञानी को इसी मंगलमय मोक्ष मार्ग की आराधना करनी चाहिए।
अध्याय चतुर्थः
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