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- अर्थ-चार अनुयोग* रूपी चार हाथों वाली यह अहवाणी श्रुतदेवता सरस्वती के समान लौकिक मातृका में एवं आगम में प्रत्यक्ष दिखाई देती है। आत्मा ही ब्रह्म है एवं उस आत्मा का अनुशासन करने के कारण इसे ही ब्राह्मी कहा जाता है । आत्मा की ज्ञानप्राप्ति के लिए हंसगामिनी अर्थात् प्राण संचारिणी है।
विवेचन-अध्यक्ष का अर्थ है अधि अक्ष यानि आँखों के सामने अर्थात् प्रत्यक्ष । अध्यक्ष-प्रत्यक्ष वह इसलिए है कि वह लौकिक जगत में भी वर्णमातृका के रूप में एवं अहं रूप परामातका के रूप में विद्यमान दिखाई देती है। अध्यक्ष का अर्थ प्रधान भी होता है वह सभी देवियों में इसलिए प्रधान है कि उसी के आधार पर अन्य पदार्थों एवं देवताओं का महत्त्व जाना जाता है अतः सभी धर्मों में इस देवी का महत्त्व गाया गया है। इसी बात का महत्त्व 'पद्मावती स्तोत्र' में प्रतिपादित किया गया है।
तारा त्वं सुगतागमे भगवती गौरीति शैवागमे वज्रा कौलिकशासने जिनमते पदमावती विश्रुता। गायत्री श्रुतशालिनां प्रकृतिः प्रोक्तासि सांख्यागमे मातर्भारति! किं प्रभूतभणितैः व्याप्तं समस्तं त्वया ॥१॥
सरस्वती के चार भुजाएं हैं तो इस अर्हद्वती अर्हद्वाणी के भी द्रव्यानुयोगादि चार अनुयोग हैं। आत्मा का अनुशासन करने के कारण ब्राह्मी है क्योंकि जीवात्मा भी तो ब्रह्म रूप ही तो है "जीवो ब्रह्मैव नापरः"। ज्ञानोपयोग के क्षेत्र में यह हंस (प्राण) गामिनी (संचारिणी) है अर्थात् यही ज्ञान प्राप्ति की उत्कंठा आत्मा में जागृत करती है एवं उसमें चैतन्य का संचारण यही करती है क्योंकि यह ज्ञान स्वरूपा है।
· बृहत्वाद् ब्रह्म सद्ज्ञानं तद् ब्रह्माऽर्हति केवलम् ।
परे ब्रह्मणि निर्माय शिवे सिद्धे स्वरूपतः ॥५॥
अन्वय-(इयं ज्ञान देवता) स्वरूपतः शिवेसिद्ध ब्रह्म सदशानं निर्माय बृहत्वाद् तद् ब्रह्म केवलम् परे ब्रह्मणि अर्हति ॥ ५॥
* द्रव्यानुयोग, कथानुयोग, चरणकरणानुयोग एवं गणितानुयोग ।
अध्याय प्रथमः
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