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वकील, डॉक्टर के रूप में प्रकट होता है। एक आत्मा में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति है, यदि कर्मरज से संपूर्णरूप से निवर्तमान हो जाए तो !
परमात्मा सर्वांश और खुद उसका अंश है, इस भ्रामक मान्यता को खत्म करते हुए ज्ञानी सचोट समझ प्रकट करते हैं कि, आत्माएँ अनंत हैं, स्वतंत्र हैं। रूपी के टुकड़े किए जा सकते हैं, अरूपी के कैसे हो सकेंगे? अंश होने के बाद जुड़कर सर्वांश किस तरह से हो पाएगा? भगवान के कभी टुकड़े हो सकते हैं? सूर्य कभी भी किरण नहीं बन सकता और किरण कभी भी सूर्य नहीं बन सकती !!! सनातन तत्व सदा अविभाज्य ही होता है । जितने अंशों में आवरण हटता है, उतना आंशिक ज्ञान प्रकट होता है। जहाँ पर सर्व प्रदेशों के आवरण खुल जाते हैं, वहाँ पर परमात्मा सर्वांश स्वरूप से प्रकाशमान हो जाते हैं !
खंड : २
'मैं कौन हूँ?' जानें किस तरह?
आत्मा-परमात्मा, ब्रह्म - परब्रह्म, जीव- शिव, ईश्वर - परमेश्वर, ये सभी पर्यायवाचक शब्द हैं। पर्यायों में परिवर्तन होने से दशा में परिवर्तन दिखता है, परन्तु मूल 'वस्तु' में परिवर्तन नहीं होता । दशा परिवर्तन से घर में पति, दुकान में सेठ और कोर्ट में वकील ! परन्तु होता है वही का वही 'खुद', सभी जगहों पर !!!
जीव और शिव में क्या भेद है? खुद ही शिव है लेकिन उसे हो गई भ्राँति और बन बैठा जीव ! यह जुदापना की भ्राँति टूटी और यह भेद खत्म हुआ कि हो गया जीव - शिव अभेद !
जीव को जीना मरना तो तभी तक है कि जब तक संसारी दशा को खुद की माने! जिसका जीना मरना मिट गया, वह शिव-आत्मा, जीव कर्म सहित होता है और आत्मा, कर्म रहित । लेकिन दोनों में आत्मा वही का वही! कर्ता-भोक्ता, वह जीव और अकर्ता - अभोक्ता, वह आत्मा ! जब
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