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अनेकान्त/54-1 cacscscacacarseICEReseacococcase अनुभाग शक्ति के स्पर्धक 120 है और अनन्त की संख्या 4 मान लो. लता भाग की शक्ति के स्पर्द्धक 8, दारुभाग के स्पर्धक 16, अस्थिभाग के स्पर्धक 32 तथा शैल भाग के स्पर्धक 64 हैं अर्थात् 8+16+32+64-120 में दर्शनमोहनीयकर्म की अनुभाग शक्ति के स्पर्धक हैं। इनमें से लताभाग के 8 दारु भाग का अनन्तवां भाग 16:434 इस प्रकार 8+4=12 भाग सम्यक्त्व प्रकृति को मिलेंगे। मिश्र प्रकृति को दारुभाग के 16-4=12 भाग जो शेष उसका अनन्तवां भाग अर्थात् 12:4=3 भाग मिथ्यात्वप्रकृति को दारु भाग में से 9 भाग बचे तथा अस्थिभाग की अनुभाग शक्ति के स्पध ‘क 32 व शैल भाग के स्पर्धक 64 मिलाकर (9+32+643105) स्पर्धक मिलेंगे। ___ यह जानाना आवश्यक है कि कौन-कौन सी देशघाति और सर्वघाति कर्म प्रकृतियां शक्ति की अपेक्षा किस किस रूप से परिणत होती हैं? मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु अवधिा दर्शनावरण अन्तराय, 4 संज्वलन और एक पुरुषवेद ये 16 प्रकृतियां शैल, अस्थि, दारु और लता इन चार भावरूप से परिणत होती हैं। शैल भाग के अभाव में शेष तीन रूप से परिणत होती हैं। शैल, अस्थि एवं दारु के अभाव में शेष दो रूप से परिणत होती हैं। शैल अस्थि एवं दारु के अभाव में मात्र लता रूप से ही परिणत होती हैं। उक्त 16 व सम्यक्त्व और मिश्र को छोड़कर शेष घातिया कर्म की प्रकृतियां तीन भाव रूप होती हैं। केवलज्ञानावरण केवलदर्शनावरण 5 निद्रा और अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान क्रोध, मान माया, लोभ रूप 12 कषाय के सर्वघाति स्पर्द्धक ही हैं देशघाति नहीं। अत: इनके स्पर्द्धक शैल, अस्थि और दारु के अनन्त बहुभाग रूप हैं। शैल के अभाव ये शेष दो रूप और शैल अस्थि के अभाव में मात्र दारु के अनन्त बहुभाग रूप से हैं। पुरुष वेद बिना 8 नोकषाय केवल लता रूप परिणत न होकर चार रूप और तीन रूप विकल्प से परिणत होती है। ___ परिणमन अवस्था को जानने के अनन्तर दोनों प्रकृतियों की सहभावी अवस्था बताया जा रहा है। देशघाति और सर्वघाति जब एक साथ काम करेगी तब क्षयोपशम अवस्था आती है किन्तु क्षयोपशम में देशघाति का उदय और सर्वघाति का अनुदय होना चाहिए। यदि अन्य कर्म भी उस गुण के क्षयोपशम में बाधक हों तो उस कर्म के भी उस गुण को घात करने