Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 263
________________ 122 अनेकान्त/54/3-4 भोगोपभोग हेतु सुखकर पदार्थो की चाह है, अतुलित बलशाली नीरोग शरीर की चाह है, संयम मार्ग पर चलने वाले संयमियों में जिनकी आस्था है, अनुराग है उन्हें नित्यप्रति अतिथि संविभाग व्रत का निर्दोष रीति से पालन करना चाहिए। आचार्य अमितगति के अनुसार परिकल्प्य संविभागं स्वनिमित्तकृताशनौषाधादीनाम्। भोक्तव्यं सागारैरतिथिव्रतपालिभिनित्यम्॥ सन्दर्भ(1) श्रावकाचार संग्रह भाग-4, (2) सागारघर्मामृत टीका 4-4 (3) भगवती आराधना 2082-83ए (4) पुषार्थ सिद्धयुपाय, 136 (5) सवर्थिसिद्धि 7,21,703, (6) सागार धर्मामृत 5/42 (7)चारित्त पाहुड टीका 25/45, (8) सर्वार्थ सिद्धि 7,21,703 (9) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 360-361, (10) सागार धर्मामृत 5/41 (11) तत्त्वार्थसूत्र 7/39, (12) रत्नकरण्डश्रावकाचार - 111 (13) पद्मनन्दिपंचविंशतिका, (14) पुरुषार्थ सिद्धयुपाय 167-174 (15) यशस्तिलक चम्पू , 746, (16) वसुनन्दि श्रावकाचार. 226-231 (177 यारित्रसार , 12--13, (18) रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 114 (19) पर्वार्थ सिद्धि 7/38/726/289/7, (20) तत्त्वार्थ सूत्र 7/36 (21। पर्वार्थ सिद्धि 7/36/723, (22) कबीर साखो (23 पावकाचार - 94 -प्रधान सम्पादक-पार्श्व-ज्योति एल-65, न्यूइन्दिरा नगर, बुरहानपुर (म0 प्र0)

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