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अनेकान्त/54/3-4
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है। कहा भी है- ज्ञानामृतं भोजनम् अतः ज्ञान के प्रतीक शास्त्र भेंट करना चाहिए।
(4) साधुओं को उनके पद के अनुरूप पीछी (संयमोपकरण) एव कमण्डलु (शुद्धि-उपकरण) प्रदान करना चाहिए।
(5) साधुओं की यथायोग्य वैयावृत्ति करनी चाहिए। अतिथिसंविभागवत के अतिचार:
'तत्त्वार्थसूत्र' में आचार्य उमास्वामि ने अतिथिसंविभाग व्रत के पाँच अतिचार (दोष) बताये है
सचित निक्षेपापिधान पर व्यपदेश मात्सर्यकालातिकमा:।।20 जिनका विश्लेषण सर्वार्थासिद्धि के अनुसार इस प्रकार है
(1) सचित्तनिक्षेप - सचित कमलपत्र आदि में भोजन रखना सचित्त निक्षेप है। ___(2) सचित्तापिघान - सचित्त कमलपत्र आदि मे भोजन ढोंकना सचिन्तापिघान
(3) परव्यपदेश - इस दान की वस्तु का दाता अन्य है, इस प्रकार कह कर दान देना पर व्यपदेश है। __ (4) मात्सर्य - दान करते हुए भी आदर का न होना या दूसरे दाता के गुणों को न सह सकना मात्सर्य है। ___(5) कालातिकम - असमय में भोजन कराना कालातिकम है।
उक्त अतिचारों पर नियंत्रण लगाते हुए यथायोग्य रीति से अतिथि विभाग व्रत का पालन करना चाहिए। राजा सोम और श्रेयांस ने भगवान आदिनाथ को इक्षुरस का आहार देकर अतिथि संविभाग व्रत का पालन किया था। फलत: पंचाश्चर्य हुए थे, देवताओं द्वारा सराहना हुई थी। 'जिन घर साधु न पूजिए, हरि की सेवा नॉहि। ते घर मरघट सारिखे, भूत बसें तिन माहिं'। अर्थात् जिनके घरो में साधु जनों की पूजा नहीं होती, प्रभु की भक्ति नहीं होती वे घर श्मसान के समान हैं। उनमें भूत निवास करते हैं। जिन्हें अक्षय परम्परा की चाह है,