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अनेकान्त/54-2
'नाना विधि संयुक्त रस व्यंजन सरस' जासो पूजा रचूं और चढ़ाते क्या हैं खालिस गिरि; 'दीप प्रजाल कंचन के सुभाजन' कहकर रंगी हुई गिरि स्टील में रख कर पेश करते हैं;
किस का मन बहला रहे हैं आप, पूज्य का या पूजक का और इन विरोधाभासों को श्रावक पण्डित कहते हैं आगम सम्मत। यदि इन अवास्तविक वचनों से और क्रियाओं से आत्मा प्रसन्न होती हैं, सान्त्वना व शांति व संतोष मिलता है तो साधुओं की भांति साध्वियों का भी सत्कार चलते रहने दीजिए।
पुराने जिन पूजा संग्रहों में मुनियों के लिए आहार से पहले की जाने वाली अलग से पूजाएं हैं तो मेरे देखने में नहीं आई। आधुनिक पूजाएं हैं उनको रचते क्या देर लगती है! वे परम्परा की प्रमाण नहीं हो सकती, कम से कम आज तो नहीं। जब शास्त्र यह कहते हैं कि - (1) स्त्रियों के संयम नहीं हो सकता; (2) स्त्रियों के ध्यान नहीं हो सकता क्योंकि ध्यान उत्तम संहनन के ही
__ होता है; (3) स्त्रियों के प्रव्रज्या (दीक्षा) नहीं हो सकती; (4) दर्शन पाहुड़ (18) के हवाले से अवरट्ठियाणं का गलत अर्थ करके
आर्यिकाओं का लिंग (पद) जघन्य बता रहे हैं, वह भी तब जब चतुर्विध संघ में उनका नम्बर दूसरा है। उनको दान के योग्य उत्तम उत्तम पात्र भी नहीं माना जाता।
- 215, मंदाकिनी एन्क्लेव, अलकनंदा
नई दिल्ली -110019
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