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अनेकान्त/54/3-4
जैन धर्म का पालन करने वाला वह सर्वश्रेष्ठ मुगल सम्राट माना जाता था। इसके समय में हिन्दी ग्रन्थ लेखन तथा जैन साहित्य लेखन के कार्य को भी
अधिक महत्व दिया जाता था श्री लालदास ने 1586 में इतिहास भाषा ग्रन्थ लिखा तथा कविवर बनारसीदास ने भी अनेकों ग्रन्थ लिखे। उस समय जैन पंच पुरुषों में आध्यात्म ज्ञानी वासू शाह ओसवाल प्रमुख थे। अकबर की पुस्तकालय में 24000 हजार पुस्तकें थीं। अनेकों प्राचीन पुस्तकों तथा संस्कृति की किताबों का तथा उस समय प्रचलित लोकप्रिय साहित्य का अरबी फारसी भाषा में अनुवाद कराया था।
इस प्रकार फतेहपुर सीकरी में किये गये पुरातात्त्विक उत्खनन एवं खोजों से यह सिद्ध होता है कि मानव का विकास प्रागैतिहासिक पाषाण युग में होता आया है और अजैन पौराणिक व अन्य साहित्यिक साक्ष्यों तथा मौखिक अनुश्रुतियों ऐतिहासिक पुरावशेषों से बहुत कुछ प्राचीनता पर प्रकाश पड़ता है। वर्तमान में मिली हुई जैन पुरातत्त्व की बहुत-सी वस्तुयें तथा शिलालेख प्रतिमायें आदि अवशिष्ट खण्डहरों में उसके पुरातत्त्व के उद्घाटन व इतिहास के संकलन की ओर आकृष्ट कर रहे हैं।
आशा है समाज के श्रीमन्तों एवं पुरातत्त्व के द्वारा काल तथा अवशिष्ट ध्वंसावशेषों की खोज करने उनके इतिहास व अपनी संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करने की ओर अभिमुख होंगे।
सन्दर्भ 1. आगरानामा पेज-9, 18, 45, 50, 54 2. ऋषभ सौरभ-1998, 1992 3. भारत का इतिहास पेज 414 4. अर्धकथानक पेज 99 5. मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन संतों का प्रभाव-डॉ. नीना जैन 6. प्रमुख अखबार अमर उजाला 3 फरवरी तथा 30 दिसम्बर 2000