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अनेकान्त/54/3-4
भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करे। क्योंकि अत्यन्त क्षोदक्षेम करने वालों के कहां से पुण्य हो सकता है-21 ज्ञानी और तपस्वी दोनों की पूजा करें ___ तप का कारण होने से ज्ञान पूज्य है। ज्ञान के अतिशय में कारण होने से तप पूजनीय है। मोक्ष का कारण होने से दोनों ही पूज्य हैं। गुणानुसार ज्ञानी और तपस्वी भी पूजनीय है। मुनियों को पैदा करने का यत्न करें
सद्गृहस्थ पुत्र के समान जगत् के बन्धु जिनधर्म की सत्प्रवृत्ति चलाने के लिए मुनियों को पैदा करने का प्रयत्न करें तथा जो वर्तमान में मुनि हैं इनका श्रुतज्ञानादिक गुणों के द्वारा उत्कर्ष बढ़ाने का प्रयत्न करे। जब तक विषय सेवन में नहीं आए तब तक के लिए उसका त्याग करें
जब तक विषय सेवन करने में नहीं आते हैं, तब तक उन विषयों का अप्रवृत्ति रूप से नियम करें अर्थात् जब तक मैं इन विषयों में प्रवृत्ति नहीं करूंगा तब तक मुझे इनका त्याग है, ऐसा नियम करें। यदि कर्मवश व्रतसहित मर गया तो परलोक में सुखी होता है। भलीभांति सोच विचार कर नियम लेना चाहिए
देश, कामादिक को देखकर व्रत लेना चाहिए। ग्रहण किए हुए व्रतों का प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिए। मदावेश से अथवा प्रमाद से व्रतभंग होने पर शीघ्र ही प्रायश्चित्त लेकर पुनः व्रत ग्रहण करना चाहिए। हिंसक सुखी अथवा दुःखी प्राणी का घात न करे ___ कोई अज्ञानी जन कहते हैं कि एक हिंसक सादि का घात करने से बहुत से जीवों की रक्षा होती है, यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि जो हिंसक जीव को मारता है, वह भी हिंसक है, उसको भी मारने वाला हिंसक है, इस प्रकार अतिप्रसंग दोष प्राप्त होता है।
कोई अज्ञजन कहते हैं कि सुखी को मारना चाहिए; क्योंकि सुखी मरकर परभव में भी सुखी होता है। ऐसा कहना ठीक नहीं है; क्योंकि सुख. को मारने