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अनेकान्त/54/3-4
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जिनदेव और जिनवाणी में कोई अन्तर नहीं है
जो भक्तिपूर्वक जिनवाणी की पूजा करते हैं वे मनुष्य वास्तव में जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करते हैं; क्योंकि (गणधर देव ने) जिनवाणी और जिनेन्द्रदेव में कुछ भी अन्तर नहीं कहा है। जैनों के चार भेद
नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव की अपेक्षा जैन चार प्रकार के होते हैं। नाम से और स्थापना से भी जैन इतरों की अपेक्षा उत्कृष्ट पात्र के समान आचरण करते हैं। द्रव्य से वह जैन पुण्यवान् पुरुषों को ही प्राप्त होता है। परन्तु भाव से जैन तो महाभाग्यवान् पुरुषों के द्वारा ही प्राप्य है। कन्यादान किसे करना चाहिए?
गृहस्थ अपने समान धर्म वाले गृहस्थाचार्य के लिए अथवा उसके अभाव में मध्यम गृहस्थ के लिए कन्या, भूमि, सुवर्ण, हाथी, घोड़ा. रथ, रत्न और मकानादि को दें। गर्भादानादि क्रियाओं के, तत्सम्बन्धी मन्त्रों के तथा व्रत, नियमादिकों के नष्ट नहीं होने की आकांक्षा से गृहस्थ को साधर्मी भाईयों के लिए यथायोग्य कन्यादिक पदार्थो को देना चाहिए। उत्तम कन्या को देने वाले साधर्मी गृहस्थ ने साधर्मी गृहस्थ के लिए त्रिवर्ग सहित गृह दिया है। क्योंकि विद्वान् लोग गृहिणी को ही घर कहते हैं, किन्तु दीवाल और बांसों के समूह को घर नहीं कहते हैं। गृहस्थ सुकलत्र के साथ विवाह करें ___धर्मसन्तति को, संक्लेशरहित रति को, वृत्त कुल की उन्नति को और देवादि की पूजा को चाहने वाला श्रावक यत्नपूर्वक प्रशंसनीय उच्चकुल की कन्या को धारण करे अर्थात् उसके साथ विवाह करे। योग्य स्त्री के बिना पात्र में पृथ्वी सोना आदि का दान देना व्यर्थ है। जड़ में कीड़ों के द्वारा खाए हुए वृक्ष में जल के सींचने से क्या उपकार है अर्थात् कुछ नहीं। वर्तमान युग के मुनियों में पूर्वकाल के मुनियों की स्थापना
सद्गृहस्थ प्रतिमाओं में स्थापित किए गए अर्हन्तों की तरह वर्तमान काल के मुनियों में पूर्वकाल के मुनियों को नामादिक विधि को द्वारा स्थापित करके