Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 239
________________ 886 98 अनेकान्त /54/3-4 स्त्री की उपेक्षा नहीं करना चाहिए स्त्रियों को पति की उपेक्षा ही उत्कृष्ट वैर का कारण होता है, इसलिए इस लोक और परलोक में सुख को चाहने वाला पुरुष कभी भी स्त्री को उपेक्षा की दृष्टि से न देखें। स्त्रियां पति के अनुकूल आचरण करें कुलीन स्त्रियों को हमेशा पति के चित्त के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए; क्योंकि पतिव्रता स्त्रियां ही धर्म, लक्ष्मी, सुख और कीर्ति का एक स्थान है | नैष्ठिक श्रावक गो आदि जानवरों से जीविका छोड़ें नैष्ठिक श्रावक गो, बैल आदि जानवरों द्वारा अपनी आजीविका छोड़ें। यदि ऐसा करने में असमर्थ हो तो उन्हें बन्धन, ताड़न आदि के बिना ग्रहण करें। यदि ऐसा करने में असमर्थ हो तो निर्दयतापूर्वक उस बन्धनादिक को न करें । मुनियों को दान देने के प्रभाव से गृहस्थ पंचसूलजन्य पाप से मुक्त हो जाता है पीसना, कूटना, चौकाचूली करना, पानी रखने के स्थान की सफाई और घर, द्वार को बुहारना ये गृहस्थों की पञ्चसूत्र क्रियायें हैं। इनसे गृहस्थ जो पाप संचय करता है, वह मुनियों को विधिपूर्वक दान देने से अवश्य धो डालता है अर्थात् उसके पाप नष्ट हो जाते हैं । श्रावक की दिनचर्या पण्डितप्रवर आशाधरजी ने श्रावक की प्रतिदिन की क्या चर्या होनी चाहिए, इसका सुन्दर निरूपण सागार धर्मामृत के छठे अध्याय में किया है। यह वर्णन अन्य श्रावकाचारों में विरल है। प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पहिले नमस्कार मन्त्र पढ़ना चाहिए, तदन्तर मैं कौन हूं, मेरा धर्म क्या है और क्या व्रत है, इस प्रकार चिन्तन करना चाहिए। अनादि काल से भयंकर संसार में भ्रमण करते हुए मैंने अर्हन्त भगवान् के द्वारा कहे हुए इस श्रावक धर्म को कष्ट से प्राप्त किया है। इसलिये इस धर्म में प्रमादरहित प्रवृत्ति करना चाहिए । इस प्रकार प्रतिज्ञा करके शय्या से उठकर स्नानादि से पवित्र होकर एकाग्र मन से अरहंत

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