Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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अनेकान्त/54/3-4
भेदज्ञान से उत्पन्न हुए वैराग्य के द्वारा ही वश में किया जाता है।
जिन्होंने शरीर और आत्मा के भेदज्ञान के लिए उस प्रकार के ऐश्वर्यादि युक्त राज्य को छोड़ दिया था वे भरतादि चक्रवर्ती धन्य हैं। किन्तु मेरे जैसे स्त्री की इच्दा की पराधीनता से दुःखी गृहस्थों को धिक्कार है।
1. सागार धर्मामृत 1/8, 2. सागार धर्मामृत 1/9 3-63. वही 1.10, 4. वही 1.11, 5. वही 1.19, 6. वही 1.20
7. रत्नकरण्ड श्रावकाचार-66, 8. सा.ध. 8-26, सागर धर्मामृत-2 2, 3, 18, 19, 20, 22, 40, 44, 54, 56, 59, 60, 61, 64, 65, 71, 77, 79,
9. वही 2/3, 10. वही 2/18, 11. वही 2/19, 12. वही 2/20 13. वही 2/22, 14. वही 2/40, 15. वही 2/44, 16. सा.ध. 2/54 17. वही-56, 18. वही 2/56, 19. वही 2/59, 20. वही 2/60 21. वही 2/61, 22. वही 2/64, 23. वही 2/65, 24. वही 2/71 25. सा.ध. 2/77, 26. वही 2/79, 27. सा.ध. 3/6, 28. वही 3/26 29. वही 3/27, 30. वही 3/28, 31. वही 4/16, 32. वही 5/49
- जैन मंदिर के पास, बिजनौर (उ.प्र.)

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