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अनेकान्त/54/3-4
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नंद्यावर्त यहां तक की तीर्थंकरों के लांक्षन सम्बन्धित तथा यक्ष यक्षिणी केवाहन
और आयुध आदि स्मारकों में साज-सज्जा के लिये स्वीकार किये गये हैं। निश्चय ही इस प्रकार की सज्जा अलंकरण मुस्लिम वास्तुकला के नियम के अनुकूल नहीं है जहां किसी प्राणी के रूप में प्रस्तुति करना वर्जित है। दीवाने-आम की बनावट शुद्ध भारतीय शैली को है। ___ यहाँ के समारकों में अलंकारिता के चित्रण में बहुत योगदान जैन आचार्यो के प्रभाव से उत्पन्न सहिष्णुता का हाथ होने के साथ-साथ अपनी अवधारणा के योगदान में इन स्मारकों की बनावट तथा सजावट पर जैन कला की एक अमिट छाप है। विदेशी यात्री तथा इतिहासकारों का कथन :
सीकरी के स्मारकों, महलों, चबूतरों आदि के बारे में कुछ प्रमुख विदेशियों ने सीकरी के बारे में अपने विचार निम्न प्रकार से प्रस्तुत किये हैं--
श्री ई.वी. हैवले का कहना है कि सीकरी में मुख्य ज्योतिषी का आसन निश्चय जैन स्थापत्य का एक विशुद्ध प्रतीक है। यह चौकोर चबूतरा जिसके चारों ओर कोनों पर स्तम्भ बने हैं जिनके शीर्ष पर एक गुम्बद टिका हुआ है। गुम्बद के वजन को समान रूप में वितरित करने के लिये प्रत्येक स्तम्भ के मध्य भाग से मकर मुख से निकलती कमल लता ऊपर जाकर दोनों ओर से धारण कर केन्द्र से मिलकर आधार बनाती है। वन्दनवार युक्त तोरण का रूप धारण करती है इसलिये इसे मकर तोरण नाम दिया है जो कि जैन मन्दिरों में बहुलता से मिलता है। इसी प्रकार जोधाबाई के महल की बनावट-सजावट राजस्थानी जैन शैली की है इसके प्रत्येक द्वार से लेकर गवाक्ष वाले स्तम्भ जालियां छतरियां आदि तथा जंजीरों में लटकते हुए घन्टे का चित्रण जैन शैली की ओर आकर्षित करता है। यहां सोने चांदी के सिक्के ढाले जाते थे। अंग्रेजयात्री शल्फ फिच :
यह यात्री 1585 में भारत आया था। उसने कहा है कि आगरा और फतेहपुर सीकरी दोनों बड़े शहर हैं उनमें से हरेक लन्दन (इंग्लैंड) से बड़ा है तथा निवासी सकुशल हैं।