Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ अनेकान्त/54/3-4 91 पण्डितप्रवर आशाधर के सागारधर्मामृत की प्रमुख विशेषतायें डॉ. रमेश चन्द जैन पण्डितप्रवर आशाधर तेरहवीं शताब्दी के जैनागम में निष्णात सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। उनका सागारधर्मामृत उनके वैदुष्य का परिचायक तो है ही, साथ ही उनके विस्तृत स्वाध्याय और निपुणमति को द्योतित करता है। उन्होंने अपने समय तक लिखे गए सभी श्रावकाचार परक ग्रन्थों का अध्ययन किया था। वे ब्राह्मण साहित्य के भी गवेषी विद्वान् थे, तत्कालीन समाज की आवश्यकता का भी उन्हें ध्यान था। अतः उनका सागारधर्मामृत एक ऐसी रचना बन गई, जिसका अध्ययन करने पर पूर्ववर्ती श्रावकाचारों का अध्ययन अपने आप हो जाता है। इसके अतिरिक्त उनके कथनों की अपनी विशेषतायें भी हैं, जिन पर प्रकाश डाला जाता है भद्र का लक्षण पण्डित आशाधर जी के समय तक ज्ञान का ह्रास हो चुका था। सच्चे उपदेश देने वाले दुर्लभ थे। अपनी पीड़ा को वे इन शब्दों में व्यक्त करते है कलिप्रावृषि मिथ्यादिङमेघच्छन्नासु दिक्ष्विह । खद्योतवत्सुदेष्टारो हा द्योतन्ते क्वचित् क्वचित् ॥ सा.ध. 1/7 बड़े दुख की बात है, इस भरतक्षेत्र में पंचम काल रूपी वर्षाकाल में सदुपदेश रूपी दिशाओं के मिथ्या उपदेश रूपी बादलों से व्याप्त हो जाने पर सदुपदेश देने वाले गुरु जुगनुओं के समान कहीं-कहीं पर दीखते हैं। अर्थात् सब जगह नहीं मिलते हैं। इस पंचमकाल में भरतक्षेत्र में भद्रपरिणामी मिथ्यादृष्टि को भी अच्छा मानते अर्थात् उपदेश देने योग्य मानते हैं, सम्यग्दृष्टियों के मिलने पर तो कहना

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271