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अनेकान्त/54/3-4
को भी बढ़ाया था।
अकबर ने सम्वत् 1640 में आगरे का प्रसिद्ध चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर का निर्माण कराकर उसकी वेदी प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन किया। सन् 1585 में उसने जजिया कर जो तीर्थयात्रियों पर लगता था बन्द करा दिया तथा जैन तीर्थ सम्मेदशिखर पावापुरी गिरनार शत्रुजय (पालीताना) केसरिया जी आदि अनेकों तीर्थ जैन समाज को दे दिये गये तथा जीव हत्या न करने के आदेश भी जारी कर दिये। जैन सन्तों के उपदेश से एक मुसलमान शासक जो सवासेर चिड़ियों की जीभ प्रतिदिन खाया करता था। उसने मांसाहार का त्याग कर दिया तथा साल में 6 महीने पशुवध का निषेध करवा दिया तथा हत्या करने पर दण्ड का विधान रखा गया। सीकरी के स्मारकों पर जैन स्थापत्य का प्रभाव : ____ अकबर ने वर्ष 1569 से 1584 ई. तक सीकरी को राजधानी बनायी थी। इस स्थान पर बनाये गये भव्य महल विश्व प्रसिद्ध बुलन्द दरवाजा, जोधाबाई का महल, दीवाने खास, पंच महल तथा पहाड़ी टीले पर स्थित खण्डहर, भव्य स्मारक, उस समय की गाथा अपने मूक शब्दों में कहते हैं। सन् 1573 मे गुजरात प्रान्त के विजय के उपलक्ष्य में इस स्थान का नाम फतेहपुर सीकरी रखा गया तथा सीकरी की प्राचीनता का अस्तित्व अक्षुण्ण बना रहे तथा इसकी पहचान के लिये पुराना नाम भी साथ में रखा। यह स्थान अब फतेपुर सीकरी के नाम से जाना जाता है। अकबर ने हिन्दू तथा जैन मन्दिरों का निर्माण किया तथा अपने महलों में भी पूरा का पूरा खंड जैन स्थापत्य के अनुरूप बनवाया गया। दीवाने आम को देखकर ऐसा लगता है कि पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात के जैन मन्दिरों तथा हवेलियों में प्रयुक्त होने वाले जैन स्थापत्य के खंड को फतेहपुर सीकरी में स्थापित कर दिया गया है। पंच महल के शीर्ष भाग में उतीर्ण विभिन्न अलंकरण जैन प्रतीकों से ही ग्रहण किये गये हैं। उदाहरण स्वरूप वृक्ष, घट, पल्लव, नंद्यावर्त आदि हैं। जोधाबाई के महल के गवाक्षों पर भी जैन स्थापत्य तथा तोरणों का प्रयोग भी सजावट के लिये किया गया है। सम्पूर्ण महल की सजावट राजस्थान शैली की तथा जैन प्रतीकों के प्रयोग यहां अलंकरण के रूप में किया है। जैन चिन्ह व स्वास्तिक, कलश,