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अनेकान्त/54/3-4
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वस्कार के जाने पर बुद्ध ने आनन्द से कहा - "राजगृह के निकट रहने वाले सब भिक्षुओं को इकट्ठा करो। " तब उन्होंने भिक्षु संघ के लिए निम्नलिखित सात धर्मों का विधान किया
1. हे भिक्षुओं! जब तक भिक्षु-गण पूर्ण रूप से निरन्तर परिषदों में मिलते
रहेंगे;
2. जब तक वे संगठित होकर मिलते रहेंगे, उन्नति करते रहेंगे तथा संघ के कर्तव्यों का पालन करते रहेंगे;
3. जब तक वे किसी ऐसे विधान को स्थापित नहीं करेंगे जिसकी स्थापना पहले न हुई हो, स्थापित विधानों का उल्लंघन नहीं करेंगे तथा संघ के विध नों का अनुसरण करेंगे।
4. जब तक वे संघ के अनुभवी गुरुओं, पिता तथा नायकों का सम्मान तथा समर्थन करते रहेंगे तथा उनके वचनों को ध्यान से सुनकर मानते रहेंगे;
5. जब तक वे उस लोभ के वशीभूत न होंगे जो उनमें उत्पन्न होकर दुःख का कारण बनता है।
6. जब तक वे संयमित जीवन में आनन्द का अनुभव करेंगे;
7. जब तक वे अपने मन को इस प्रकार संयमित करेंगे जिससे पवित्र एवं उत्तम पुरुष उनके पास आयें और आकर सुख - शान्ति प्राप्त करें;
तब तक भिक्षु संघ का पतन नहीं होगा, उत्थान ही होगा। जब तक भिक्षुओं में ये सात धर्म विद्यमान हैं, जब तक वे इन धर्मों में भली-भाँति दीक्षित हैं, तब तक उनकी उन्नति होती रहेगी।
महापरिनिब्बान सुत्त के उपर्युक्त उद्धरण से वैशाली - गणतन्त्र की उत्तम व्यवस्था एवं अनुशासन की पुष्टि होती है। वैशाली के लिए विहित सात धर्मों को (कुछ परिवर्तित करके) बुद्ध ने अपने संघ के लिए भी अपनाया; इससे