Book Title: Anekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 222
________________ अनेकान्त/54/3-4 के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वैसी भी पुरातत्त्व विभाग की (एपिग्राफी शाखा) प्राचीन लेख मुद्रा शाखा ने भी इन शिलालेखों का गहन अध्ययन किया है तथा जैन पक्षिणी की चतुर्भुज प्रतिमा पर संस्कृत में अंकित हैं, जिसका अर्थ है ओम विक्रम संवत् 1067 (1010 ईसवी) बैशाख शुक्ला पक्ष नवमी को श्री वज्राम के राजा सीकरी नगर- जो शान्ती विमलाचार्य की वस्ती है में संचाभर और मल्लिक्या वाणी सेठों ने श्री सरस्वती प्रतिमा की स्थापना कराई। साथ में शिल्पकार का नाम आदिल भी अंकित है तथा उसका नाम अन्य शब्दों में बड़ा है-हो सकता है कि आदिल मूर्तिकला में काफी प्रभावशाली रहा हो। इसी प्रकार द्वितीय लेख ऋषभदेव जैन तीर्थकर की प्रतिमा, जो उत्खनन में प्राप्त हुई है उस पर लिखा शिला लेख का अर्थ है विक्रम संवत् 1079 ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी (1022 ईसवी) रविवार के दिन स्वाति नक्षत्र में श्री ऋषभदेव प्रथम जैन तीर्थकर की प्रतिमा की स्थापना, श्री विमलाचार्य की संतान परम श्रद्धेय देवराज और उनकी पत्नी धनपति इन दोनों ने करवाई। तृतीय जैन तीर्थंकर सम्भवनाथ की प्रतिमा के साथ शिलालेख पर लिखा है कि विक्रम संवत 1079 ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी रविवार (1022 ई.) के दिन स्वाति नक्षत्र में श्री सम्भवनाथ तृतीय जैन तीर्थकर की प्रतिमा की स्थापना श्री विमलाचार्य की संतान परम श्रावक देवराज और उनकी पत्नी धनपति इन दोनों ने करवाई। प्रतिमा में लिखे संतान शब्द से अभिप्राय अपने निजी पुत्र अथवा परम्परा से प्राप्त शिष्य दोनों ही सम्भव है। इस प्रकार तीन शिला लेख यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ जैन आचार्यो की बस्ती थी तथा वेदी प्रतिष्ठा हआ करती थी। यहाँ पर खुदाई के दौरान जो जैन सरस्वती की मूर्ति मिली है वह कला की दृष्टि से अद्वितीय है विश्व में इससे सुन्दर सरस्वती की कोई मूर्ति नहीं है। उस भव्य सरस्वती मूर्ति के शीर्ष पर दोनों ओर दिगम्बर जैन तीर्थकरो की मूर्तियाँ धारण किये हुये अंकित है। मूर्ति की केश सज्जा, हार, कानों के कुण्डल आभूषण एवं पैरों की पैजनियों की छवि अति विमुग्धकारी एव सर्वश्रेष्ठ सुन्दरता को सिद्ध करती है। मुकुट मण्डल में भी तीर्थंकर की प्रतिमा विराजित है। ऋषभदेव के प्रतिहारों द्वारा मूर्ति के दोनों ओर चँवर ढोले जा रहे हैं तथा कमर में बंधी करदोनी भी श्रृंगार का अद्वितीय रूप लिये है। इसी प्रकार संभवनाथ की मूर्ति पर दोनों ओर तीर्थंकरों की चौबीसी भव्य रूप में उत्कीर्ण

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