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अनेकान्त/54/3-4
इनके सिवाय श्री मिलापचन्द कटारिया के पास ही उपलब्ध, गुटकों में चार श्लोक और अतिरिक्त हैं, जिन्हें 'बीज काव्य' लिखा गया है, पर ये भी मूल स्तोत्रकार कृत नहीं हैं क्योंकि प्रथमतः ये 48 श्लोकों के अतिरिक्त हैं। द्वितीयत: स्वयं लेखक ने ही इन्हें बीजकाव्य फह दिया है। 'बीजकाव्य' श्लोक निम्न हैं - बीजकं काध्यम् - ओं आदिनाथ अर्हन्सुकुलेवतंसः
श्रीनाभिराज निजवंश शशि प्रतापः। इक्ष्वाकुवंश रिपुमर्दन श्रीविभोगी
शाखा कलापकलितो शिव शुद्धमार्गः॥1॥ कष्ट प्रणाश दुरिताप समावनाहि
अंभोनिधौ दुरवय तारक विघ्नहर्ता। दुःखाविनारि भय भग्नति लोह कष्टं
तालोर्द्धघाट भयभीत समुत्कलापाः॥2॥ श्रीमानतुंगगुरुणा कृतबीजमंत्रः
यात्रा स्तुतिः किरण पूज्य सुपादपीठः। भक्तिभरो हृदयपूर विशाल यात्रा
कौ धौ दिवाकर समांवनितांजनाहीं॥3॥ त्वं विश्वनाथ पुरुषोत्तम वीतरागः
त्वं नैनरागकथिता शिवशुद्धमार्गा। त्वौच्चाट भंजनवपुःखल दुःखहाब्जान्
__ त्वं मुक्तिरूप सुदया पर धर्मपालान्।1413 समस्यापूर्ति साहित्य की पुरानी विधा है। परवर्ती काल में भक्तामर काव्य इतना प्रसिद्ध हुआ कि मुनि रत्नसिंह ने भक्तामर के प्रत्येक पद्य की चौथी पंक्ति लेकर 'प्राणप्रिय काव्य' की रचना की। इस प्रकार प्राणप्रिय काव्य में अड़तालीस श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक की तीन पंक्तियां मुनि रत्नसिंह रचित हैं