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अनेकान्त/54/3-4
आर्यिका ज्ञानमती की संस्कृत साहित्य की देन
- डॉ. जयकुमार जैन भारतीय संस्कृति के सर्वांगीण ज्ञान के लिए प्राचीन भारतीय भाषाओं में लिखित साहित्य का पर्यालोचन अत्यन्त आवश्यक है। प्राचीन भारतीय भाषाओं में भारतीय संस्कृति के एक प्रमुख वाहन के रूप में संस्कृत भाषा का अद्वितीय महत्त्व सर्वत्र स्वीकृत है। भारत की यह संस्कृति अनादिकाल से अनन्त प्रकार के सम्प्रदायों की देन से समृद्ध हुई है। अतः संस्कृत साहित्य का विशाल भण्डार प्राचीनकाल के तीन प्रमुख सम्प्रदायों-वैदिक, जैन और बौद्ध के मनीषियों की सेवा से सतत समृद्ध हुआ है। एक विशिष्ट भारतीय सम्प्रदाय के रूप में जैनों ने साहित्य की जो सेवा की है, इस विषय में सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् डॉ. एम. विन्टरनित्ज़ का कथन द्रष्टव्य है
share to the religious, ethical and scientific literature of ancient India "
- The jainas in the History of Indian Literature, page 5
- मैं जैनों की साहित्यिक उपलब्धियों का युक्तियुक्त पूर्ण विवेचन करने में असमर्थ रहा हूँ। किन्तु मैं आश्वस्त हूँ कि जैनों ने प्राचीनकाल के धार्मिक, नैतिक और वैज्ञानिक साहित्य में जो सम्पूर्ण सहयोग दिया है, उसे मैंने प्रमाणित कर दिया है।
विद्वान् समीक्षक की इस उक्ति से स्पष्ट है कि संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में जैनों की देन का पूर्णांग आकलन करना अत्यन्त आवश्यक है। पुराकाल में धार्मिक साहित्य-सृजन के क्षेत्र में साधु तो अग्रणी बने रहे किन्तु साध्वियों द्वारा लिखित साहित्य की कोई उल्लेख्य धारा नहीं मिलती है। यह सुखद आश्चर्य