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अनेकान्त:54/3-4
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आतमरूप अनुपम है
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आतमरूप अनुपम है,
घटमाहिं विराजै। जाके सुमरन जाप सो,
भव-भव दुःख भाजै हो।
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केवल दरशन ज्ञानमै,
___ थिरता पद छाजै हो। उपमाको तिहुँ लोक में,
कोउ वस्तु न राजै हो॥1॥
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सहै परीषह भार जो,
जु महाव्रत साजै हो। ज्ञान बिना शिव ना लहै,
बहु कर्म उपाजै हो॥2॥
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तिहुँ लोक तिहुँ काल में,
___नहिं और इलाजे हो।
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'द्यानत' त
निज स्वारथ काजै हो।।3॥
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- कविवर द्यानतराय
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