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अनेकान्त/54/3-4
पूज्य माताजी द्वारा किया गया अष्टसंहस्री का पद्यानुवाद भी इस दुरूह एवं क्लिष्ट ग्रन्थ के हार्द को सुस्पष्ट करने में सर्वथा समर्थ है। अन्यन्त संक्षेप में मैंने संस्कृत साहित्य में आर्यिकारत्न ज्ञानमती की देन की चर्चा की है। मुझे विश्वास है कि पूज्य माताजी का संस्कृत साहित्य में काव्यप्रतिभा एवं तार्किक वैदुषी के लिए समीचीन मूल्यांकन होगा।
सन्दर्भ
1. 'तीर्थकृच्चक्रवर्त्यादिमहापुरुषसेवितम्।
तस्मान्महाव्रतं ख्यातमित्युक्तं मुनिमुङ्गवैः।।' -आराधना, श्लोक 55 2. 'मूलं विना वृक्ष इवालयो च भवेन्न लोके च तथैव साधुः। न जायते मूलगुणान् विनाऽस्माद् एते विमुक्तिरपि मूलमेव।।'
-वही, श्लोक 88 3. 'श्रीपतिर्भगवान्पुष्याद् भक्तानां वा समीहितम्।
यद्भक्ति: शुल्कतामेति मुक्तिकन्याकरग्रह।।' क्षत्रचूडामणि, मंगलाचरण 4. 'स्याद्वादचिन्तामणिनामधेया, टीका मयेय क्रियतेऽल्यबुद्धया। चिन्तामणिः चिन्तितवस्तुदावे, सम्यक्तशुद्धयै भवतात् सदा में।'
-अष्टसहस्री, भाग-1, श्लोक 17 रीडर एवं अध्यक्ष-संस्कृत विभाग
एस.डी. (पी.जी.) कालेज मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)-251001