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अनेकान्त/54-2
दूसरे चरण में अब उस सूची पर अधिक एकाग्रता से चिंतन संभव हो सकेगा अब देखिये कि किस-किस कार्य में आपने कितना-कितना समय लगाया है। क्या वास्तव में उतना ही समय लगना चाहिए था या फिर उससे कुछ कम समय में भी उसी कुशलता से उस कार्य के निष्पादन के लिए पर्याप्त है। आप पायेंगे कि वास्तव में आपने काफी समय व्यर्थ किया है, जो आप बचा सकते थे। इस समय को बचाने का अभ्यास करिये। समय की बचत के साथ ही आपकी ऊर्जा का अपव्यय भी रुकेगा। दूसरे चरण की पूर्णता तक आप पायेंगे कि आपके पास काफी समय एवं ऊर्जा बची रहती है।
प्रथम दो चरणों की क्रिया से अब आपके पास समय एवं ऊर्जा दोनों का सुरक्षित कोष हो गया है। इसी कोष के सदुपयोग से अब तीसरा चरण शुरू होता है। इस कोष का उपयोग ऐसे कार्यो में करना शुरू करिये जिससे मन संयमित, शांत हो सके, स्वभाव में दृढ़ता आये तथा लोक में कीर्ति भी फैले। ऐसे स्व, पर कल्याणकारी कार्य करना शुरू करें। सुपात्रों को दान, दया दान, देव,पूजन, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, शास्त्र श्रवण आदि-आदि। इस प्रकार के कार्यो से जहां एक ओर निज स्वरूप से निकटता में वृद्धि होगी वहीं दूसरी ओर जीवन में सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान एवं शुभ भावों की वृद्धि होगी। सम्यक् भाव आने से षट्काय के जीवों की रक्षा हेतु कृतसंकल्पित होंगे। जीवन में निकांक्षित कर्म का महत्व समझ सकेंगे। पाप प्रकृतियों का क्षयोपशम होगा, पुण्य प्रकृतियों के फलोदय में वृद्धि होकर पुण्याश्रवी उत्कृष्ट पुण्य प्रकृतियों का बंध होगा। इससे लोक में वैभव, कीर्ति, यश में वृद्धि को प्राप्त हो निशंकित रूप से धर्म मार्ग पर चलने की दृढ़ता स्वमेय वृद्धि को प्राप्त होगी।
तृतीय चरण की पूर्णता से हुई शुभ भावों की वृद्धि का अवलम्ब ले चतुर्थ चरण, जो मुख्यतः ध्यान एवं चिंतन का चरण है, की शुरुआत करिये। सोचिये, अनादिकाल से दूसरों पर दया, करुणा करता आया हूं, पर-पदार्थों को जानने का पुरुषार्थ करता आया हूं। क्या आज तक दूसरों पर करुणा, दया कर पाया? क्या पर की दशा, पर का परिणमन परिवर्तित कर पाया? क्या वास्तव में पर-पदार्थो का परिणमन परिवर्तित कर पाना संभव है? या वे सब अपने-अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की सीमाओं में सीमाबद्ध होकर स्वतंत्र, निर्बाध परिणमन कर रहे हैं? इन प्रश्नों पर चिंतन
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