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अनेकान्त/54-2
कोपीनोऽपि सम्पूर्च्छत्वात् नार्हत्यार्यो महाव्रतम् । अपि भाक्तममूर्च्छत्वात् साटकेऽप्यार्यिकार्हति। सा.ध. 8/37
एक कोपीन मात्र में ममत्व भाव रखने से आर्य याने उत्कृष्ट श्रावक (ऐलक) भी (उपचरित) महाव्रती नहीं कहलाता जबकि आर्यिका साड़ी में भी ममत्व भाव न रखने से (उपचरित) महाव्रत के योग्य होती है। और यह भी कि -
बाह्यो ग्रंथोऽङगमक्षाणामन्तरो विषयैषिता निर्मोहस्तत्र निग्रंथः पान्थः शिवपुरेऽर्थतः। सा.ध. 8/90
-शरीर तो बाह्य ग्रंथ है, इन्द्रियों की विषय अभिलाषा अन्तरंग ग्रंथ है, इन दोनों प्रकार के ग्रंथों में जो मोह रहित है वही वास्तव में शिवपुर का पथिक है। इसके मुताबिक सवस्त्र साध्वियां भी निग्रंथ की श्रेणी में आती हैं क्योंकि उनका शरीर व वस्त्र से कोई मोह नहीं है। मजबूरी उनकी यह है कि वे पुरुषों की दुष्टता की आशंका के कारण बहुत चाहते हुए भी वस्त्र का भार उतार नहीं सकतीं। अत: वे किसी नग्न मुनि के कम सत्कार की पात्र हैं, यह कहना मेरी समझ से तो बाहर की बात है।
बेनाडा जी तो आर्यिकाओं को आहार दान के लिए उत्तम पात्र भी नहीं मानते जब कि महापुराण 40/141 के अनुसार सदृष्टि: शील सम्पन्नः पात्रमुत्तममिष्यते, सम्यक्दृष्टि और शीलसम्पन्न व्यक्ति उत्तम पात्र होता है। इसके अलावा यह मामला अधिकार वितरण का नहीं है और सत्कार की कोई सीमा नहीं है। ___ वट्टकेर के मूलाचार में जिसे कुन्दकुन्द की रचना भी बताया जाता है यह लिखा है कि
एसो अज्जाणपिअ समाचारो जहक्खिओ पव्वं। सव्वम्हि अहोरत्तं विभासिदब्वो जधाजोग्ग।। 4/187 - जैसा समाचार श्रमणों के लिए कहा गया है उसमें वृक्षमूल, अभ्रावकाश एवं आतापन आदि योगों को छोड़कर अहोरात्र संबंधी सम्पूर्ण समाचार आर्यिकाओं के लिए भी यथायोग्य रूप में समझना चाहिए।