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अनेकान्त/54-1
प्रियव्रत जिनके पुत्र थे नाभि। नाभि के पुत्र थे ऋषभ जिनके एकशत पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र भरत ने पिता का राज्य प्राप्त किया और इन्हीं राजा भरत के नाम पर यह प्रदेश 'अजनाभ' से परिवर्तित होकर भारतवर्ष कहलाने लगा। जो लोग दुष्यन्त के नाम पर यह नामकरण मानते हैं, वे परंपरा के विरोधी होने से अप्रमाण हैं।" पृष्ठ 333-334। अंत में उन्होंने अपने कथन के समर्थन में वायुपुराण, भागवतपुराण के उद्धरण दिए हैं। __ स्व. उपाध्यायजी प्रस्तुत लेखक के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत गुरु थे। सरस, स्पष्ट शैली के धनी उपाध्यायजी 99 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए। कुछ ही वर्षों पूर्व वे काशी के एक जैन विद्यालय में पधारे थे। सभा में उन्होंने इतना ही कहा कि यह देश ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष कहलाता है और अपने निवास स्थान लौट गए। प्रस्तुत लेखक इस लेख के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
श्री आप्टे का विशालकाय संस्कृत-अंग्रेजी कोश भी भरत नाम की प्रविष्टि में यह उल्लेख नहीं करता है कि वेद-काल के भरत नाम पर यह देश भारत कहलाता है। यह कोश प्राचीन या पौराणिक संदर्भ भी देता है।
उपर्युक्त चौथी व्युत्पत्ति - ऋषभ-पुत्र भरत के नाम पर भारत ही भारतीय परंपरा में सर्वाधिक मान्य हुई है। 2. नग्न मूर्तियां नहीं, कायोत्सर्ग तीर्थंकर ___ताम्र-पाषाण युग की चर्चा करते हए श्री शर्मा ने लिखा है, "कई कच्ची मिट्टी की नग्न पुतलियां (!) भी पूजी जाती थीं।" (पृ. 48) उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इनके पूजने वाले कौन थे? वे शायद यह जानते होंगे कि कुषाण काल की जो जैन मूर्तियां मथुरा में मिली हैं, उनमें 6 इंच की एक मूर्ति भी है। जैन व्यापारी जब विदेश व्यापार के लिए निकलते थे, तब वे इस प्रकार की लघु मूर्तियां अपने साथ पूजन के लिए ले जाया करते थे। आगे चलकर ऐसी प्रतिमाएं हीरे, स्फटिक आदि की बनने लगीं। वे कुछ मंदिरों में आज भी उपलब्ध और सुरक्षित हैं। अत: उन्हें 'पुतलियां' और 'पूजी जाने वाली' दोनों एक साथ कहना अनुचित है। 3. पशुपतिनाथ सील, अहिंसासूचक है
सिंधु सभ्यता की एक सील (प्र. 66) के संबंध में श्री शर्मा ने लिखा है कि उसे देखकर 'पशुपति महादेव' की छबि ध्यान में आ गई'। यदि