________________
अनेकान्त/54-1
कर्नाटक के कदम्ब और गंग वंश जैनधर्म के अनुयायी थे। उनके संबंध में श्री शर्मा का मत है-"पश्चिमी गंग राजाओं ने अधिकतर भूमिदान जैनों को दिया। कदम्ब राजाओं ने भी जैनों को दान दिया पर वे ब्राह्मणों की ओर अधिक झुके हुए थे।"
कर्नाटक के इतिहास की सबसे प्रमुख घटना हेमागंद देश (कोलार गोल्ड फील्ड से पहिचान की जाती है) के राजा जीवंधर द्वारा स्वयं महावीर से जैन मुनि दीक्षा लेना है। कर्नाटक स्टेट गजेटियर में उल्लेख है, "Jainism in Karnataka is believed to go back to the days of Bhagawan Mahavir, a prince from Karnatak is described as having been initiated by Mahavir himself."
दूसरी प्रमुख घटना चंद्रगुप्त मौर्य का श्रवणबेलगोल की चंद्रगिरि पहाड़ी पर तपस्या एवं निर्वाण है।
श्री शर्मा ने इतिहास प्रसिद्ध इन घटनाओं का उल्लेख नहीं किया है जब कि इस ब्राह्मण अनुश्रुति का जिक्र किया है, "कहा जाता है कि मयूरशर्मन् ने (कदम्ब वंश का संस्थापक) अठारह अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों को असंख्य (?) गांव दान में दिए।" प्रसिद्ध पुरातत्वविद श्री रामचंद्रन का मत है कि बनवासि के कदम्ब शासक यद्यपि हिंदू थे तथापि उनकी बहुत-सी प्रजा जैन होने के कारण वे भी यथाक्रम जैनधर्म के अनुकूल थे।
गंग वंश के संबंध में श्री शर्मा ने ऊपर कही गई दान की बात के अलावा और कोई तथ्य नहीं लिखा। इस वंश की स्थापना में सर्वाधिक योगदान जैनाचार्य सिंहनंदि का था। अनेक गंग राजाओं ने जैन मंदिरों आदि का निर्माण करवाया था। श्री रामचंद्रन ने लिखा है, "जैनधर्म का स्वर्णयुग साधारणतया दक्षिण भारत में और विशेषकर कर्नाटक में गंग वंश के शासकों के समय में था जिन्होंने जैनधर्म को राष्ट्रधर्म के रूप में स्वीकार किया था।"
तमिलनाडु (तमिलगम) : इस प्रदेश के चार राजवंश प्रख्यात हैं-पल्लव, पांड्य, चोल और चेर।
पल्लव वंश आंध्र और तमिलनाडु के सीमावर्ती प्रदेश पर शासन करता था। उसकी राजधानी कांजीवरम् (कांची) थी। इसके संबंध में श्री शर्मा लिखते हैं कि पल्लच किसी कबीले के थे और उन्हें "पूरा-पूरा