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जनेकान्त/54-2
M. आत्मा शुद्धाशुद्ध का पिण्ड है, अत: वह कथंचित् शुद्ध है, कथंचित्
अशुद्ध। N. जो एक जिनवचन को भी नहीं मानता, वह मिथ्यादृष्टि है। O. चौथे गुणस्थान में गुणश्रेणी निर्जरा नहीं होती (कभी-कभी हो सकती
P. जिसका काल नहीं आया है उसका मरण नहीं हो सकता, ऐसा
एकान्त नहीं है। अत: अकालमरण सत्य है। Q. अत्यन्त निष्काम पुण्य परम्परा से मोक्ष का कारण है।" R पहले व्यवहार होता है, फिर निश्चय।' इत्यादि ........... टिप्पण - 1 इसका यह अभिप्राय है कि पंडितों के ग्रन्थों की प्रामाणिकता
आचार्य प्रणीत ग्रन्थों के आधार से होती है। 2. जैसा केवलज्ञान में झलका है वही होता है यह सत्य है। तथैव यह
भी सत्य है कि जैसा भाग्य व पुरुषार्थ का योग होगा, फल उसी
के अनुसार होगा। अतः पुरुषार्थ में प्रवृत्ति करनी चाहिए। 3 आत्मानुशासन गाथा 33, प.प्र 2/37, मो पा. 77, साध 2/64,
प.पं. 1/68 आदि। 4. त्रि सा 857 से 859 तथा ति.प 4/1520-1533 5. न्याय दीपिका 2/4/27, भ.आ. (विजयो.) 1070, क.पा 1/1/13।
पृ 265, प.मु. 6/63, स्व.स्तो 33, 56, 60, स सि 5/30/300 तथा
श्लोक वा. भाग 6 पृ. 197-198 एवं ज.ध. 15/191। 6. प्रसा. गाथा 9 टीका ता वृ, वही गाथा 181 ता.व., वृद्रि.स 34,
अ अ क. पृ. 374 (प जगमोहनलाल जी), जैन संदेश दि 6 5.58 प. 4. जैन गजट दि. 23.11.67 प. 8 तथा 152.73 प. 7 तथा 41.68 पृ 7, मुख्तार ग्रन्थ पृ. 833 प्र.सा. गाथा 230 ता वृ प प्र. 2/111
आदि सत्रह प्रमाण देखो :-वीतराग वाणी अप्रैल-मई 98 पृ 9-12। 7 ज.ध 1/7 ण च ववहारणओ चप्पलओ। 8. ते उण ण दिट्ठसमओ विहयइ सच्चे व अलीए वा। नया संस्करण
ज.ध. 1/2331 9 मो पा.गा 25 तथा इष्टोपदेश तथा तत्त्वार्थसार (अमृतचन्द्र)। 10. भ.आ गाथा 38-391
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