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ऋषिभाषित सूत्र : एक अमर दीपक है ३ वादी श्रमण या श्रमणोपासक को या मार्गानुसारी नीतिमान सद्गृहस्थ को उसे ग्रहण करने से इन्कार नहीं करना चाहिए।
ऋषिभाषित के रचयिता प्रश्न होता है कि ऋषिभाषित के रचयिता कौन थे ? परन्तु इसके कुल ४५ अध्ययनों में प्रत्येक अध्ययन के साथ उसके प्रवक्ता अहंतर्षि का नाम उल्लिखित है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस सूत्र का कोई एक रचयिता नहीं है, क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति की कृति नहीं है। इसमें विभिन्न वक्ताओं के चिन्तन-सूत्र संकलित हैं। ऋषिभाषित के प्रायः प्रत्येक अध्ययन के प्रारम्भ में उस-उस प्रवक्ता ऋषि का अर्हत् ऋषिविशेषणपूर्वक नामोल्लेख किया गया है । अतः ये सभी ऋषि आईत्परम्परा में दीक्षित, विशिष्ट ज्ञानी साधक या अर्हत-सिद्धान्त-प्ररूपक थे। वैदिक धर्म के 'ऋषयो मंत्रद्रष्टारः' इस परिभाषा के अनुसार ये सभी ऋषि अध्यात्मतत्त्वों के मूलमंत्रों के ज्ञाता-द्रष्टा थे। जैन परिभाषा में इन्हें 'प्रत्येकबुद्ध' कहा गया है । यद्यपि जैन जगत् में चार ही प्रत्येकबुद्ध प्रसिद्ध हैं, तथापि इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येकबुद्ध चार ही हुए हैं। यही कारण है कि नन्दीसूत्र में विभिन्न तीर्थंकरों के शासन में हुए प्रत्येकबुद्धों की संख्या दी गई है, जो हजारों तक पहुँची है। जैसे-भगवान् आदिनाथ के ८४००० शिष्य तथा भगवान् महावीर के १४००० शिष्य ऐसे थे, जो चार प्रकार की (औत्पातिकी, वैनयिकी, कामिकी और पारिणामिकी) बुद्धि से युक्त थे, उन्होंने उतने ही हजार प्रकीर्णक रचे तथा वे सब 'प्रत्येकबुद्ध' हुए थे । प्रत्येकबुद्ध का अर्थ है-वह पवित्र और जागृत आत्मा, जो किसी एक निमित्त को पाकर प्रबुद्ध हुआ, जाग उठा है, जिसके अन्तर् में सोया हुआ ‘परमात्मा' जागृत हो गया है।
जिस बीज में हवा, पानी एवं प्रकाश के संयोग से वृक्ष का विराट रूप प्रस्फुटित हो जाता है, वह बीज विराट् वृक्ष के रूप में संसार में पूजा जाता है । उसी प्रकार ऐसे प्रत्येकबुद्धों के जीवन में भी आईत्-सिद्धान्त के बीज विराट् वृक्ष के रूप में विस्तार पा गये थे। उन्हीं सिद्धान्तों का उन्होंने प्रतिपादन किया है। उनके अन्तःकरण में अध्यात्म ज्ञान का आलोक जगमगा उठा था। उनकी आन्तरिक वृत्तियाँ प्रशान्त, पवित्र एवं निर्मल थीं।
ऋषिभाषित सत्र में जिन प्रत्येकबुद्धों की वाणी का संकलन है, वे मुख्यतया तीन तीर्थंकरों के युग के थे-(१) भगवान् नेमिनाथ, (२) भगवान् पार्श्वनाथ और (३) भगवान् महावीर ।
- इसके अतिरिक्त इस सूत्र के प्रत्येक अध्ययन के प्रारम्भ में उसके प्रवक्ता के रूप में अर्हत्-ऋषि कुर्मारपुत्र, तेतलिपुत्र जैसे जैन-संस्कृति के