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अमर दीप
शान्ति समर के एक अमर गायक ने कहा हैशान्ति-समर में कभी भूल कर धैर्य नहीं खोना होगा। वज्रप्रहार भले सिर पर हों, किन्तु नहीं रोना होगा ॥ध्रुव।। अरि से बदला लेने का मन बीज नहीं बोना होगा। घर में तूल कान में देकर, किन्तु नहीं सोना होगा ।।१।। आँखें लाल भौंहें टेढ़ी कर, क्रोध नहीं करना होगा। . बलिवेदी पर तुझे हर्ष से चढ़ कर कट मरना होगा ॥२॥ सरल मार्ग को छोड़ स्वार्थ-पथ पैर नहीं धरना होगा। होगी निश्चय जीत धर्म की, यही भाव भरना होगा ॥३॥
मित्रो ! कहने को तो बहुत है । परन्तु समय की सीमा है । मैं अपनी बात अब समेट रहा है। मूल बात यह है कि साधक को तप, जप, ध्यान, प्रतिक्रमण, सामायिक, महाव्रत-पालन आदि उत्तम धर्माचरण में भी यशोलिप्सा, ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा भाव, आदि दोष आकर मन के क्षेत्र पर आंक्रमण न कर दें, अन्यथा, दुर्गुण प्रविष्ट हो जाने पर तो साधक की जीत नहीं, हार होगी। चेतावनी
इसीलिए अर्हतर्षि वल्कलचीरो साधकों को चेतावनी के स्वर में कहते हैं
सुत्तमेतति चेव, गन्तुकामेऽवि से जहा। एवं लद्धा वि सम्मग्गं, सभावाओ अकोविते ॥७॥ जं तु परं णवहि, अंबरे वा विहंगमे । दढसुत्तणिबद्ध त्ति
सिलोको ॥८॥ णाणापग्गहसंबंधे, धितिमं पणिहितिदिए । सुत्तमेत्तगती चेव, तधा साधु निरंगणे ॥६॥ सच्छेदगतिपयारा, जीवा संसार-सागरे । कम्मसंताणसंबद्धा, हिडंति विविहं भवं ॥१०॥ मन्नती मुक्कमप्पाणं पडिबद्ध पलायते। विरते भगवं वक्कलचीरि उग्गतवेत्ति · ॥१२॥
भावार्थ यह है -धागे से बंधा पक्षी गमन करना चाहता है, परन्तु उसकी गति जहाँ तक धागा है. वहीं तक है । इसी प्रकार स्वभावतः अकु