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जीवन की सुन्दरता
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कई बार कई व्यापारी, जिनमें जैन श्रावक भी हैं, दूसरे की कमजोर आर्थिक स्थिति का फायदा उठाने के लिए पहले तो किसी चीज का सौदा कर लेते हैं, फिर उस चीज का भाव गिर जाने पर जब वह घाटे की रकम समय पर चुका नहीं पाता, तब बड़ी सख्ती से, निर्दयता से उसके साथ पेश आते हैं, कई तो कुर्की लाकर उसका घर-बार तक नीलाम करा देते हैं । परन्तु जो सच्चा श्रावक होता है, वह ऐसे समय में आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति के साथ सहानुभूति, दया और मानवता का व्यवहार किये बिना नहीं रह सकता ।
खून नहीं पी सकता
श्रीमद् रायचन्द्रजी जैन साधक थे। वे जवाहरात का व्यवसाय करते थे । एक बार उन्होंने किसी दूसरे व्यापारी के साथ जवाहरात का सौदा किया, अमुक भाव में उसे रायचन्द्रजी को अमुक अबधि ( मुद्दत) तक में माल दे देना था। परन्तु भावों में एकदम तेजी आ गई । श्रीमद् रायचन्द्रजी ने सोचा कि ऐसे समय में अगर वह व्यापारी मुझे अपने सौदे के अनुसार माल देगा तो बर्बाद हो जायेगा, वह सँभल नहीं पायेगा, दर-दर का मोहताज हो जायेगा | अतः मुद्दत से कुछ दिन पहले ही वे उस व्यापारी के यहाँ गये । वह सकपकाया और कहने लगा- मैंने जो सौदा किया है, वह पक्का है, आप घबराइए नहीं ।
परन्तु श्रीमद् रायचन्द्रजी ने कहा- वह पुर्जा लाओ, जो हमारा सौदा तय होने पर लिखा गया था। उन्होंने उस व्यापारी से पुर्जा लेकर तुरन्त उसे फाड़ डाला । व्यापारी बोला- “आपने ऐसा क्यों किया ? मैं तो इस सौदे में घाटे की पाई-पाई चुकाने का प्रयत्न करता ।"
रायचन्द्रजी ने कहा - 'रायचन्द्र किसी का दूध पी सकता है. खून नहीं । मैं अपनी मानवता को तिलांजलि देकर ऐसा कार्य नहीं कर सकता । आपका और हमारा सौदा रद्द है ।"
बन्धुओ ! यह है श्रावक के द्वारा होने वाली सामाजिक हिंसा में सावधान ! ऐसे तो अनेक प्रसंग आते हैं, जिनमें श्रावक को हिंसा - अहिंसा का विवेक करना है । किसी की धरोहर या अमानत वस्तु या सम्पत्ति को हजम कर जाना, किसी के साथ मनमुटाव होने पर उसका घर जला देना, उसकी कार या किसी चीज को फूँक देना, थोड़ी-सी गलती पर नौकर को सख्त सजा देना, किसी पर झूठा कलंक लगाकर या झूठमूठ डाइन घोषित करके उसे कायल कर देना, आदि सब हिंसा काण्ड हैं ।