Book Title: Amardeep Part 01
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 260
________________ आत्मविद्या से कर्मविमुक्ति २३५ तिरुवल्लुबर- “ना भाई ! गुस्सा किस पर करूं ? एक जड़ वस्तु के लिए मैं अपनी आत्मा की अमूल्य शक्ति खर्च करू ? प्रकृति ने कपास का पौधा बनाया। धरती का अमृतपान करके वह बड़ा हुआ। उसमें अनेक कपासिये लगे, जिन्होंने मिलकर साड़ी के परिमाण में कपास दिया। कपास लोढ़ने वाले ने कपास लोढ़कर उनमें से कपासिये अलग किये। पीजने वाले ने कपास को पीजा, पूनी बनाने वाले ने पूनियाँ बनाईं। कई हाथों ने चखें पर उसे काता और सूत तैयार किया, रंगरेज ने उनको अनेक पक्के रंगों में रंगा । बुनकर ने विविध रंगी सूत यथास्थान जोड़कर सुन्दर साड़ी बनाई। अब वह साड़ी फट गई तो मैं किस पर गुस्सा करू ? साड़ी के निर्माण में इतने हिस्सेदारों में से किसकी मेहनत व्यर्थ गई ? भाई ! तुम ही कहो, क्रोध करने का कोई स्थान रहा है ?" वह धनिकपुत्र तो यह सुनकर सिसक-सिसक कर रोने लगा। उसने तिरुवल्लुवर के चरणों में गिरकर कहा --'महात्मन् ! मुझे क्षमा करें। धनवानी के नशे में आकर मैंने ऐसा किया है। आपने मेरी आँख खोल दीं।' . जो काम साड़ी देने से नहीं हुआ, वह काम साड़ी वापस लेने से हो गया । एक धनिकपुत्र का जीवन बदल गया । तिरुवल्लुवर ने उससे कहा“साड़ी की इतनी कीमत नहीं है, जितनी जीवन की है ? साड़ी बिगड़ी, उसकी मुझे इतनी चिन्ता नहीं है, परन्तु कीमती जीवन बिगड़े, इसकी मुझे चिन्ता थी । अतः भाई ! तुम्हारा कीमती जीवन न बिगड़े, इसका ध्यान रखना।" यह है एक विद्यावान् का जीवन ! विद्यावान् का अर्थ साक्षर नहीं, आधुनिक पैसा कमाने वाली विद्याएँ पढ़ा हुआ शिक्षित भी नहीं, न ही बी. ए., एम. ए. पढ़ा हुआ ग्रेज्युएट या पोस्ट-ग्रंज्युएट होने से होता है । जिसमें बौद्धिक प्रतिभा नहीं होती, या सात्त्विक व्यवसायत्मिका बुद्धि भी नहीं होती, न ही आध्यात्मिक जिज्ञासा होती है, उसे विद्यावान् नहीं कहा जा सकता। किसी को विद्यावान् तभी कहा जा सकता है, जब उसमें बौद्धिक प्रतिभा, व्यावहारिक एवं सात्विक धर्मयुक्त बुद्धि, सिद्धान्तनिष्ठा एवं तत्वश्रद्धा हो, भले ही वह लौकिक विद्याओं से सम्पन्न न हो। आजकल सफेदपोश और छल-छबीले वेश में अनेक अविद्यामूर्ति फिरते दिखाई देते हैं। परन्तु उनकी बातचीत, चाल-ढाल, गुणावगुण या व्यवहार पर से ही प्रायः विद्यावान् और अविद्यावान् की परख की जा सकती है। वैसे तो सभी अपने आपको विद्यवान् कहलाना पसंद करते हैं । अतः

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