Book Title: Amardeep Part 01
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 267
________________ २४२ अमरदीप क्योंकि उसे बाल्यकाल से आत्मविद्या नहीं मिलो, आत्मा को अमरता और उसकी शक्तियों का ज्ञान नहीं मिला। माता-पिता ने उसके देह का भरणपोषण किया, परन्तु उसकी आत्मा का पोषण नहीं किया । देह का पोषण तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं। मनुष्य का गौरव बच्चों के सिर्फ देहपोषण में नहीं, परन्तु उसकी आत्मा को शक्तिशाली, तेजस्वी, निर्भय और संस्कारी बनाने में है । माता द्वारा आत्मविद्या की प्रेरणा से आयंरक्षित का कायापलट आर्य रक्षित का विद्याभ्यास पाटलिपुत्र में हुआ था। जब वह वेदादि १४ विद्याओं का अध्ययन करके दशपुर लोटा तो राजा आदि सबने उसका स्वागत-सत्कार किया, परन्तु माता सोमा उदास रही। उदासी का कारण 'पूछा तो माता ने कहा - 'पुत्र ! तुमने जितनी विद्याएँ पढ़ी हैं, वे सब संसार को बढ़ाने वाली हैं, तुम अध्यात्मविद्या पढ़कर आओगे, तभी मुझे सन्तोष होम | अध्यात्मविद्या ही संसार से पार उतारने वाली है। उसमें से एकमात्र दृष्टिवाद का अध्ययन कर लोगे तो तुम्हारा बेड़ा पार हैं ।' माता ने दृष्टिवाद के अध्ययन के लिए आर्यरक्षित को यह कहकर भेजा कि 'आचार्य तोषपुत्र के पास जाकर इस अध्यात्मविद्या को पढ़ो और वे जैसा कहें, वैसा ही करो, तभी मुझे प्रन्नता होगी ।' आर्यरक्षित आचार्य तोषलपुत्र के पास पहुंचे, अपनी जिज्ञासा प्रकट की । उन्होंने गृहस्थाश्रम त्यागकर श्रमण बनने और विशिष्ट तपस्या व साधना अंगीकार करने पर अध्यात्मविद्या पढाना स्वीकार किया। आर्यरक्षित ने उनसे मुनिदीक्षा ले ली । अध्यात्मविद्या पढ़ी। फिर आगे के अध्ययन के लिए आचार्य ने उन्हें भद्रगुप्तसूरि के पास भेजा । उन्होंने दृष्टिवाद के दस पूर्वों के ज्ञाता वज्रस्वामी के पास भेजा । आर्यरक्षित ने उनकी सेवा में रहकर दृष्टिवाद के नो पूर्वी तक का अध्ययन कर लिया । वज्रस्वामी ने उन्हें आचार्यपद दे दिया । फिर उनके लघुभ्राता फल्गुरक्षित बुलाने आ गये । अत्यानुग्रहवश वे उनके पास दशपुर चले गये । माता आदि सब उन्हें आत्मविद्यासम्पन्न देखकर अतीव प्रसन्न हुए । सारा परिवार प्रतिबुद्ध हुआ । फल्गुरक्षित भी दीक्षित हुआ । उनके निमित्त से अनेक व्यक्तियों का उद्धार हुआ । यह था बन्धनों और दुःखों से सर्वथा सर्वदा मुक्त करने वाली अध्यात्मविद्या का प्रभाव । यह तो निश्चित है कि आत्मविद्या से कर्मबन्धन- मुक्ति अथवा दुःखों से सर्वथा विमुक्ति हो जाती है । परन्तु प्रश्न यह होता है कि इस आत्मविद्या

Loading...

Page Navigation
1 ... 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282