Book Title: Amardeep Part 01
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 266
________________ आत्मविद्या से कर्मविमुक्ति आगन्तुक - 'एम० ए० होने के बाद क्या करोगे ?' विद्यार्थी- फिर कोई नौकरी करूँगा ।' २४१ उक्त तत्वचिन्तक तो आगे से आगे प्रश्न पूछ रहे थे । उन्होंने पूछा'फिर ?' विद्यार्थी को उत्तर दिये बिना कोई चारा न था । अंतः कह डाला - फिर तो प्रभुता में चरण रखूँगा अर्थात् — विवाह कर लूँगा ।' आगन्तुक - 'ठीक है, फिर क्या करोगे ?' विद्यार्थी - "फिर क्या ? फिर तो वृद्ध हो जाऊँगा ।" आगन्तुक ने प्रश्न का दौर आगे बढ़ाते हुए पूछा - 'फिर ?' विद्यार्थी जरा घबराया । कोई उत्तर सूझता नहीं था । पिता को समक्ष देखकर उसने धीरे से कह डाला "फिर तो मर जाएँगे ।" तत्वचिन्तक ने कहा- इतनी विद्या साधना, अभ्यास और प्रवृत्ति के बाद भी मरना है ? क्या मरने के लिए इतना सब करना है ? अन्त में, मरना ही है तो, इतना विद्याभ्यास न करो, देशाटन न करो तो भी मरा जा सकता है ? क्या अपढ़ आदमी नहीं मरता ? तुम विद्यावान् हो, तो तुम्हें कहना चाहिए था -- फिर अमर बनूँगा । मृत्यु को पराजित करूँगा । दुर्वृत्तियों पर विजय प्राप्त करूँगा । जीवन को आत्मगुणों से प्रकाशित करूंगा ।' आत्मविद्या का अभ्यासी के लिए तो कहा गया है - 'मृत्यु' तर आत्मवित्' आत्मविद्या का जानकार मृत्यु को भी पार कर जाता है । सुखदुख, संयोग-वियोग तथा सम्पत्ति विपत्ति में अपनी आत्मा और मन की मस्ती न खोये, वहीं सच्चा विद्यावान् है । विद्यावान् मानव सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि प्रकृति के खेलों को देखकर घबराता या रोता नहीं, वह समभावपूर्वक सहन करता है । ऐसी स्थिति में मनुष्य को सच्ची विद्या मिले तभी वह आत्मतत्वों का स्पर्श कर सकता है । वर्तमान में मातानों द्वारा आत्मविद्या नहीं, देहविद्या वर्तमान युग का मानव प्रकृति के निर्मल तत्त्वों से, एकान्त में आत्मचिन्तन करने से, पुरुषार्थ से, तप और त्याग से डरता है । इसका कारण यह है कि ये माताएँ बचपन से ही रोते हुए बालक को चुप करने के लिए उसमें भय के संस्कार डालती हैं- "चुप रह, वह बाबा आया, कान काट गा ! वह बिल्ली आई, ले जायेगी । हौवा आया, ले जायेगा, इत्यादि ।" इसका नतीजा यह होता है कि वह बालक मृत्यु के कगार पर हो तब तक डरता रहता है । जो प्राणियों से डरता है, वह मौत मे भी डरेगा ही ।।

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