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१९४ अमरदीप
जुत्त अजुत्तं जोगं ण पमाणमिति बाहुकेण अरहता इसिणा बुझतं ।
'युक्त ( यथार्थ ) बात भी अयुक्त योग ( मन, वचन और काया ) के साथ है तो वह प्रमाणरूप नहीं है; इस प्रकार श्री बाहुक अर्हतषि ने कहा । ' वस्तुतः प्रत्येक साधना के पीछे निष्ठा, दृष्टि, उद्देश्य, विचार या श्रद्धा अथवा वर्तमान युग की भाषा में कहें तो इरादे (Intention) का महत्व है, केवल क्रिया का नहीं ।
क्रिया : कब शुद्ध कब अशुद्ध ?
कोई क्रिया शुभ है, किन्तु उसके पीछे अशुभ निष्ठा काम कर रही है तो वह क्रिया अपवित्र हो जाएगी। एक वैद्य है, वह किसी रुग्ण बहन का हाथ नब्ज देखने के लिए पकड़ता है; एक गुण्डा भी किसी स्त्री का हाथ कामवासना से प्रेरित होकर पकड़ता है । इन दोनों की क्रिया दीखने में समान है, किन्तु भाव या दृष्टि से बहुत बड़ा अन्तर है । इसीलिए दोनों के परिणाम (फल) में अन्तर है ।
बिल्ली उन्हीं दांतों से अपने बच्चे को पकड़ती है और उन्हीं दांतों से एक चूहे को पकड़ती है, परन्तु पकड़ने की क्रिया एक होते हुए भी दोनों के पीछे भावों में अन्तर है । अपने बच्चे को वह वात्सल्यपूर्वक पकड़ती है; जबकि चूहे को जब पकड़ती है, तब वह अपने दांत तीखे कांटे की तरह गड़ा देती है ।
एक कैदी जेल में भूखा रहता है, क्योंकि उसे बरबस भूखा रखा गया है, जबकि एक तपस्वी स्वेच्छा से उपवास करके भूखा रहता है। भूखे रहने की क्रिया में समानता होने पर भी दोनों के भावों में अन्तर होने से फल में अन्तर हो जाता है । एक डॉक्टर भी ऑपरेशन करते समय छुरी से रोगी के अंग की चीर-फाड़ करता है और एक हत्यारा भी किसी किसी के अंग में छुरी घुसेड़कर उस अंग को चीर या फाड़ डालता है । छुरी अंग में घुसेड़ कर उसे चीरने - फाड़ने की क्रिया एक सरीखी होते हुए भी दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर होने से दोनों के फल में रात-दिन का अन्तर है ।
मान लो, तीन बहनें रसोई बनाने की क्रिया कर रही हैं। एक बहन पड़ौसी मुझे चतुर प्रशंसा प्राप्ति का
चाहती है कि मैं ऐसी रसोई बनाऊँ जिससे घर के तथा और सुघड़ नारी कहें, मेरी प्रशंसा करें। इस बहन का कोण है।