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महानता का मूल : इन्द्रिय विजय | २२५
विषयासक्ति निवारण : दृढ़ विरक्ति से पांचों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के लिए विषयासक्ति का निवारण करना अनिवार्य है। विषयासक्ति से दृढ़विरक्ति ही उससे निवारण का प्रमुख उपाय है । विषयों के प्रति अरुचि, उनकी दुःखरूपता, असारता, अतृप्ति और पुनरावृत्ति-भावना के चिन्तन से विरक्ति दृढ़ हो जाती है।
विषयो के प्रति अरुचि उनके दोषों के दर्शन चिन्तन-मनन से होतो है । विषयरुचि का प्रधान कारण कांक्षामोह का उदय है । अतः सर्वप्रथम विपयों के प्रति अरुचि या घृणा होनी चाहिए । एक दृष्टान्त द्वारा मैं अपनी बात स्पष्ट कर देता हूं- एक भक्त राजा ने एक जितेन्द्रिय महात्मा से अपने महलों में पधारने की प्रार्थना की । परन्तु महात्मा ने यह कहकर उसकी प्रार्थना टाल दी कि मुझे तुम्हारे महलों में दुर्गन्ध आती है, इसलिए मैं वहाँ नहीं आ सकता।
राजा ने कहा -“महाराज ! महलों में तो इत्र-फुलेल छिड़का रहता है, वहाँ दुर्गन्ध को क्या काम ? महात्मन् ! आपकी बात समझ में नहीं आई।"
महात्मा एक दिन राजा को साथ लेकर चमारों की बस्ती में जा पहुंचे। वहाँ एक पीपल की छाया में दोनों खड़े रहे। चमारों के घरों में कहीं चमड़ा कमाया जा रहा था, कहीं वह सूख रहा था तो कहीं ताजा चमड़ा तैयार किया जा रहा था। उसमें से बड़ी दुर्गन्ध आ रही थी। दुर्गन्ध के मारे राजा की नाक फटने लगी। उसने महात्मा से कहा- "महात्माजी ! जल्दी चलिये यहाँ से । दुर्गन्ध के मारे यहाँ खड़ा नहीं रहा जाता।"
___ महात्माजी बोले-“राजन् ! तुम्हें ही दुर्गन्ध आती है, इन चमारों के स्त्री-पुरुषों को तो देखो। ये सब काम कर रहे हैं, खा-पी रहे हैं। इनको तो बिल्कुल दुर्गन्ध नहीं आती।"
- राजा ने कहा- "भगवन् ! चमड़ा कमाते-कमाते और चमड़े में रहतेरहते इनका ऐसा अभ्यास हो गया है कि इन्हें चमड़े की दुर्गन्ध नहीं आती। पर मैं तो इसका अभ्यासी नहीं हूँ।"
महात्मा ने हंसकर कहा-"राजन् ! यही हाल तुम्हारे राजमहल का हैं । तुम्हें विषयभोगों में रहते-रहते उनकी दुर्गन्ध नहीं आती, तुम्हारा अभ्यास हो गया है, पर मुझे तो विषय को देखते ही उसकी दुर्गन्ध के मारे उलटी-सी आती है। इसी कारण मैंने तुम्हारे महल में आने से इन्कार किया था।" राजा ने रहस्य समझ लिया।
बन्धुओ ! उक्त महात्मा की तरह जब साधक को विषयों से अरुचि. हो जाएगी, तब उसकी सच्ची विरक्ति समझी जाएगी।