________________
आत्मविद्या से कर्मविमुक्ति
धर्मप्रेमी श्रोताजनो!
आज हम जीवन के उस पहलू पर विचार कर रहे हैं, जिससे साधक जीवन में प्रकाश पाकर अपने आपको मुक्त कर सके। जैसे प्रकाश और अन्धकार दोनों पास-पास ही रहते हैं, इसी प्रकार मानव जीवन में वे दोनों पास-पास ही रहती हैं, इसी कारण उसे पहचानने में आम आदमी भूल कर बैठता है । अतः उन्हें हम दो नामों से पुकारेंगे। एक का नाम है विद्या और दूसरी का नाम है अविद्या । अविद्या का अर्थ अज्ञान नहीं, किन्तु मिथ्याज्ञान है । ज्ञान तो चेतना का लक्षण है, वह सभी में रहता है, किन्तु किसी का ज्ञान सम्यग्ज्ञान होता है तो किसी का मिथ्याज्ञान। इसका कारण है अन्तर में रही हुई कषाय आदि वृत्तियाँ। विद्या का महत्व और विद्यावान का जीवन
विद्या और अविद्या की पहचान न कर पाने के कारण अधिकांश लोग दीर्घकाल तक संसार परिभ्रमण करते रहते हैं। अतः इस सतरहवें अध्ययन में अर्हतर्षि विदु विद्या की महत्ता, उसका लक्षण आदि बताकर प्रत्येक साधक को उक्त अध्यात्मविद्या को अपनाने का निर्देश कर रहे हैं
इमा विज्जा महाविज्जा सव्वविज्जाण उत्तमा ।
जं विज्ज साहइत्ताणं सव्वदुक्खाण मुच्चति ॥१॥ वह विद्या महाविद्या है, और समस्त विद्याओं में श्रेष्ठ है ; जिस विद्या की साधना कर मनुष्य सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।
विद्या का महत्व सभी आस्तिक धर्मों और दर्शनों ने एक स्वर से स्वीकार किया है। इसका कारण है कि विद्यावान् व्यक्ति हर एक वस्तु के वस्तुस्वरूप को यथार्थरूप से जान-देख पाता है। विद्यावान् व्यक्ति कैसी