Book Title: Amardeep Part 01
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 243
________________ २१८ अमरदीप इसके विपरीत जो इन छहों इन्द्रियों का गुलाम-दास है, वह इनके विषयों के प्रति राग द्वेषवश हर्ष-शोक करता है, वह इन ६ के अधीन है। इन्द्रियविजेता ही विश्वविजेता जो इन इन्द्रियों का गुलाम है, वह दुनिया का गुलाम है, जो इन इन्द्रियों का विजेता है. वही विश्वविजेता है। क्योंकि बाह्य शत्रुओं को शस्त्रास्त्र द्वारा युद्ध कौशल से जीतना आसान हैं, मगर (उत्पथगामी) इन्द्रिय-शत्रुओं को जीतना अत्यन्त कठिन है । किरातार्जुनीयम् (सर्ग ११/३२ श्लोक) में कहा गया है जोयन्तां दुर्जया देहे रिपवश्चक्षुरादयः । जितेषु ननु लोकोऽयं, तेषु कृत्स्नस्त्वया जितः ।। 'अपने शरीर में रही हुई चक्षु आदि इन्द्रियाँ दुर्जय शत्रु हैं। इन्हें सर्वप्रथम जीतना चाहिए। इन्हें जीत लेने पर समझो कि तुमने सारा संसार जीत लिया।' ___ जगत को सैन्यबल या शस्त्रों के द्वारा जीतना सुगम है। जगत् पर पशुबल से साम्राज्य चलाना भी सरल है, परन्तु इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना अथवा इन्द्रियों पर आत्मा का साम्राज्य स्थापित करना कठिन ही नहीं, अति कठिन है। इन्द्रियाँ जिसके काबू में नहीं हैं, जो इन्द्रियों को विषयों की ओर दौड़ने से रोक नहीं सकता, उसे विजयी कैसे कहा जा सकता है ? अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से वह पराजित है, परतन्त्र है। आज स्वाधीनता के नाम की रट लगाने वाले व्यक्ति तो बहुत हैं। पर वे नहीं जानते कि स्वाधीनता किस चिड़िया का नाम है। जिनको अपने आप पर जरा भी संयम या शासन नहीं है, केवल स्वाधीनता की बातें करते हैं वे स्वाधीनता का मर्म नहीं जानते । जिस मनुष्य की आँखें अपवित्र रूप और सौन्दर्य की प्यासी बनी हुई हैं, जीभ भक्ष्याभक्ष्य का विचार किये बिना भिन्न-भिन्न स्वादिष्ट वस्तुओं का स्वाद चखने के लिए तरसती है। कान नहीं सुनने योग्य बातों और निन्दा-गली को सुनने के लिए तैयार रहते हों, स्पर्शेन्द्रिय (त्वचा) अपवित्र और गुदगुदाते कोमल स्पर्शों की लिप्सु हो, मन दूसरों का बुरा चिन्तन करने में रचा-पचा रहता हो, नाक सुन्दर सुवास के लिए हजारों पुष्पों का उपमर्दन करके तैयार किये हुए इत्र या सुगन्धित पदार्थ को सूघने में तत्पर रहती हो तथा दुर्गन्ध या बदबूदार कहकर ग्रामीण गरीबों, तथा सच्चे सेवकों से दूर भागती हो, ऐसी

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