Book Title: Amardeep Part 01
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Aatm Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 246
________________ महानता का मूल : इन्द्रियविजय | २२१ हैहै स पण्डितो यः करणैरखण्डितः " पण्डित वही है, जिसकी इन्द्रियाँ विषयों को देखकर खण्डित - विचलित न हुई हो ।' श्रमण इन्द्रियों के विषय-प्रवाह में न बहे जिस प्रकार पानी का स्वभाव ढलाव की ओर बहने का है, उसी प्रकार इन्द्रियों का स्वभाव अपने अपने विषय की ओर लुढ़कने का - विषय - प्रवाह में बह जाने का है । जिस समय कोई भी इन्द्रिय अपने विषय की ओर बहने लगे. उस समय यदि संयमी पुरुष भी उनसे प्राप्त होने वाले तथाकथित क्षणिक विषय -सुखों के प्रलोभन में आकर राग-द्व ेष करने लगता है तो वह ज्ञान, ध्यान, तप, चरित्र आदि सबको भूल जाता है। यही कारण है कि बाह्य जीवन (शरीरादि की) की नश्वरता को स्वीकार करते हुए भी उस समय आत्मा के उद्धार की बात भी धरी रह जाती है । इन्द्रियाँ अत्यन्त उत्तेजित होकर कई बार ऐसे गाफिल साधक के मन को बलात् खींच ले जाती हैं । इसीलिए गीता में कहा गया है- इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः । इन्द्रियाँ अपने पूर्वसंस्कार एवं अभ्यासवश अच्छे से अच्छे साधक को बलात् अपने-अपने विषयों की ओर आकर्षित करके ले जाती हैं । इसीलिए सोरियायन ऋषि साधकों को इन्द्रियों के विषय-प्रवाह में बहने से सावधान करते हुए कहते हैं । उनके कथन का भावार्थ यह है प्रश्न - इन्द्रियों का परिस्रवण ( बहाव ) विषयों की ओर जाते से कैसे रोका जा सकता है और कैसे उक्त प्रवाह में साधक बह जाता है ?' । उत्तर- 'श्रोत्र न्द्रिय विषय प्राप्त मनोज्ञ शब्दों में साधक आसक्त न हो, अनुरक्त न हो, न ही उन मधुर शब्दों में गृद्ध हो उन कर्णप्रिय शब्दों के द्वारा साधक अपनी स्वाभाविक स्थिति के व्याघात का अनुभव न करे । श्रोत्र विषय प्राप्त शब्दों में आसक्ति अनुरक्ति, और गृद्धि करता हुआ तथा सुमना ( सुन्दर मन वाला) श्रमण मन से उनकी आसेवना करता हुआ, उनके माधुर्य-रस-प्रवाह में बहता हुआ पापकर्मो का ग्रहण (बन्ध) कर लेता है । इसलिए साधक श्रोत्र विषय प्राप्त मनोज्ञ शब्दों में कतई आसक्त, अनुरक्त एवं गृद्ध न हो। इसी प्रकार सुमना श्रमण मनोज्ञ रूप, गन्ध, रस और स्पर्शो में आसक्त, अनुरक्त एवं गद्ध न हो, अर्थात् राग न करे । और इसके विपरीत अमनोज्ञ रूप- गन्ध-रस-स्पर्शो पर द्वेष न करे ।' इन्द्रियों को विषयों की ओर दौड़ाने से महाहानि कई लोग अथवा नास्तिक या भोगवादी दार्शनिक कहते हैं कि इन्द्रियों को विषयों में खुली छोड़ दें, तो क्या हर्ज है ? वे तो अपने आप में

Loading...

Page Navigation
1 ... 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282