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१८६ अमरदीप
.. विवाह शादियों में कई बार इतनी रोशनी की जाती है कि उसमें सैकड़ों जीव आकर मर जाते हैं। दीवाली, होली आदि के दिनों में फटाके, आतिशबाजी आदि में हजारों जीव स्वाहा हो जाते हैं। कई बार श्रावकश्रीविका के अविवेक के कारण अनाज में कीड़े पड़ जाते हैं। तेल, घी आदि के बर्तन खुले रह जाने पर भी कई जीव उनमें पड़कर मर जाते हैं। इस प्रकार के अविवेक के कारण हुई त्रसजीवों की हिंसा से बचा जा सकता है।
कई श्रावक रेशमी कपड़े पहनते हैं, पर वे यह नहीं जानते कि एक मीटर रेशमी कपड़े बनाने में कितने शहतूत के कीड़े उबाल कर मारे जाते हैं। इसी प्रकार मोती, हाथी दाँत आदि का उपयोग करने वालों को उनको प्राप्त करने में होने वाली हिंसा का ख्याल करना चाहिए।
कॉफ लेदर, क्र म लेदर आदि चमड़े से बनी हुई वस्तुओं का इस्तेमाल करने से पहले उसको प्राप्त करने में कितने पंचेन्द्रिय जोवों की हिंसा हुई है, इसका विचार करके इन हिंसानिष्पन्न वस्तुओं का त्याग करना आव. श्यक है।
आजकल बहुत-से शृगार-प्रसाधनों में कई त्रसजीवों की हिंसा होती है । अतः इस प्रकार के हिंसानिष्पन्न शृंगार प्रसाधनों का इस्तेमाल कतई नहीं करना चाहिए । अपने मौज-शौक, अपनी सुख-सुविधा के लिए श्रावक । वर्ग को किसी वस्तु का इस्तेमाल करने से पूर्व उसे मन ही मन प्रश्न करना चाहिए क्या वह जीव मुझ से प्रश्न नहीं कर सकता कि अपने मौज-शौक, ऐशआराम एवं सुख के लिए मुझे क्यों मारना चाहते हो ?
श्रावक को महाहिंसाजनक महारम्भ और महापरिग्रह के बचना अनिवार्य है, क्योंकि ये दोनों नरक में ले जाने वाले हैं, नाना प्रकार के दुष्कर्म बन्ध कराने वाले हैं। देखो, आत्मा का सौन्दर्य कितना और क्यों विकृत है ? । ___अब एक दूसरे पहलू से आत्मिक सौन्दर्य का वास्तविक परिचय कराने के लिए अर्हतर्षि भयाली दार्शनिक चर्चा छेड़ते हुए कहते हैं
संतस्स करणं गत्थि, णासतो करणं भवे ।। बहुधा दिळं इमं सुठ्ठ, णासतो भव-संकरे ॥२॥ संतमेतं इमं कम्मं, दारेणेतेणोवट्ठियं । णिमित्तमेत परो एत्थ मज्म मे तु पुरे करं ॥३॥