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आध्यात्मिक विकास का राजमार्ग
धर्मप्रेमी श्रोताजनो !
आज मैं आपके समक्ष आध्यात्मिक-विकास के सम्बन्ध में प्रकाश डालूंगा।
प्रत्येक साधक अपनी आत्मा का विकास चाहता है। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि मुमुक्षु साधक चाहता है कि आत्मा की शक्तियों को रोकने वाली, उन्हें जकड़कर रखने वाली गांठों को तोड़कर आत्मा निराबाध रूप से मोक्षमार्ग की ओर गति-प्रगति करे। आध्यात्मिक विकास के लिए आत्मिक विवेक आवश्यक
परन्तु क्या आप बता सकते हैं कि आध्यात्मिक विकास के लिए सर्वप्रथम किस बात की आवश्यकता है ? आप नहीं बता सकते हों तो मैं ही बता दूं।
आध्यात्मिक विकास का सम्बन्ध केवल पढ़ने-लिखने से नहीं, भौतिक ज्ञान से भी नहीं, उसका सम्बन्ध है-आत्मिक विवेक को जगाने से । यदि भौतिक ज्ञान-विज्ञान या पढ़ाई-लिखाई सहज-प्राप्त हो तो बहुत अच्छी बात है, परन्तु वह अगर सहज प्राप्त न हो तो कोई बात नहीं है । उसके लिए पश्चात्ताप की, या किसी को कोसने की आवश्यकता नहीं। कबीरजी कोई एम० ए० डी-लिट, साहित्यरत्न या शास्त्री आदि किसी भी पदवी (डिग्री) के धारक नहीं थे, उनकी शैक्षणिक योग्यता बहुत ही अल्प थी, किन्तु उनमें, कर्मयोगमय आध्यात्मिक जीवन जीने का विवेक था । इसी प्रकार रैदास आदि कई सन्त बहुत ही कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन उनका आत्म-विकास प्रबल था। उसका कारण था-आत्मिक-विवेक की अधिकता।
बहुत-से व्यापारी पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी उनके व्यावहारिक जीवन में आध्यात्मिक विकास देखते ही बनता था। आनन्द श्रमणोपासक की जीवन