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मिथ्या श्रद्धा और सम्यक् श्रद्धा
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सम्यक् श्रद्धा का दूरगामी परिणाम धर्मप्रेमी श्रोताजनो !
तेतलिपुत्र अर्हषि की जीवन गाथा पर से इतना तो स्पष्ट है कि जब तक काम, क्रोध, भय, लोभ, मोह, अभिमान आदि दुर्गुणों की प्रबलता मिश्रित श्रद्धा रहती है, तब तक आत्मशक्ति पर सच्ची श्रद्धा जमती नहीं।
और जब आत्मशक्ति पर सम्यक् श्रद्धा दृढ़ हो जाती है, तब कामादि का प्रभाव हट जाता है । सम्यक्ज्ञान प्रकट होता है और सम्यक्चारित्र की पगडंडियाँ पार करके एक दिन वह सिद्धि-मुक्ति के द्वार खोल देता है । सम्यक् श्रद्धा की सुदृढ़ता ही उसका मूल है ।