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जन्म-कर्म-परम्परा की समाप्ति के उपाय १३६
जन्म-कर्म से मुक्त होने का पुरुषार्थ करें
बन्धुओ ! इस अध्ययन में अर्हतर्षि ने ६ तथ्यों का प्रतिपादन कर दिया है - (१) आत्मा है, (२) वह नित्य है, (३) वह अपने कर्मों का कर्ता, (४) और भोक्ता है, (५) (आस्रव और बन्ध से मुक्तिरूप) मोक्ष है और (६) मोक्ष का उपायरूप सद्धर्म ( संवरनिर्जरारूप ) है । यही जैनदर्शन के छह मुख्य स्तम्भ हैं।
आप भी इन जीवादि नौ तत्त्वों पर गम्भीरता से विचार करके अपनी आत्मा को कर्म - बन्धन से और जन्म-परम्परा से मुक्ति दिलाने का पुरुषार्थ करें । मानव-जीवन में यही पुरुषार्थ श्रेयस्कर है ।