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मिथ्या श्रद्धा और सम्यक् श्रद्धा
समय पोट्टिला ( अमात्य की पत्नी) भी गर्भवती है । यदि उसके गर्भ से पुत्री हो तब तो कोई प्रश्न ही नहीं है । किन्तु यदि पुत्र हो तो उस समय कोई न कोई उपाय अवश्य ही इस सत्कार्य के लिए निकल आयेगा । मैं वफादारी के लिए चाहे जो त्याग करने को तैयार हूँ । आप निश्चिन्त रहें ।'
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महारानी पद्मावती को इस उत्तर से बड़ा आश्वासन मिला । उसका रोम-रोम उल्लास से भर गया । उसने अन्तर् से अमात्य को आशीर्वाद की वृष्टि की।
महारानी के शुभसंकल्प एवं श्रद्धाबल के अनुसार प्रकृति भी अनुकूल हुई । ठीक समय पर महारानी के पुत्र हुआ और अमात्य तेतलिपुत्र की पत्नी पोट्टिला की कूंख से पुत्री हुई। पूर्व संकेतानुसार अमात्य ने राजपुत्र को अपने यहाँ रखा और अपनी पुत्री रानी को सौंपी। राजा को पुत्री के जन्म की खबर मिली । फिर समझाया गया कि पुत्री का अंग-भंग करने की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह तो आपके राज्य की उत्तराधिकारिणी हो नहीं सकती । फलतः राजा समझ गया । परन्तु जिसके पुण्य प्रबल होते हैं, उसका कोई भी बाल बाँका नहीं कर सकता । राजा तो इसी भ्रम में था कि मेरा राज्य लेने वाला कोई नहीं है। मैं लाखों वर्षों तक सुख-सुविधापूर्वक जीऊँगा और राज्य करू ंगा । परन्तु पापकर्मों का बदला मिले बिना नहीं रहता ।
अमात्य ने राजकुमार का नाम कनकध्वज रखा। राजकुमार की तरह सभी सुख-साधनों से उसका पालन-पोषण होने लगा । उसे कलाओं और विद्याओं का अभ्यास कराया । कनकध्वज ज्यों-ज्यों बड़ा होता गया, त्योंत्यों अपने जन्म और पालन-पोषण का रहस्य समझता जाता था । फिर भी अमात्य तलिपुत्र को वह पिता ही मानता था । उसके प्रति उसके मन पूज्यभाव था !
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कनकरथ राजा की अश्रद्धा का परिणाम
इधर राजकुमार राज्याभिषेक के योग्य हो रहा था, उधर राजा असाध्य रोग से पीड़ित था। मैं कभी रुग्ण नहीं होऊँगा, ऐसा कनकरथ राजा का अभिमान उतर गया था । वह ज्यों ज्यों इलाज कराता था, त्यों-त्यों अधिकाधिक बीमार होता जाता था । राजा के पाप कर्म उदय में आगये थे । मृत्यु राजा के सामने नाचने लगी। राजा ने अपार धन खर्च कर दिया, सभी कुछ उपाय कर लिये, सभी मंत्रवादी, तंत्रवादी,