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दुःख के मूल : समझो और तोड़ो
धर्मप्रेमी श्रोताजनो !
आज मैं आपके समक्ष ऐसे विषय की चर्चा करूँगा जो आपके या मानव जाति के ही नहीं समस्त प्राणियों के जीवन से सम्बन्धित है । वह है - दुःख क्या है, क्यों है और उससे मुक्त होने का उपाय क्या है ? दो प्रकार की वृत्ति वाले मानव इस संसार में दो तरह की वृत्ति वाले मनुष्य होते हैं
एक होते हैं - श्वानवृत्ति वाले । जिस प्रकार श्वान पत्थर मारने वाले को नहीं, परन्तु पत्थर को पकड़ने दौड़ता है, उसी प्रकार कई अज्ञानी मनुष्य इस वृत्ति के होते हैं, जो दुःख आ पड़ने पर दुःख के निमित्तों पर आक्रोश करते
। इसके विपरीत ज्ञानी पुरुष सिंहवृत्ति के होते हैं। सिंह गोली लगने पर गोली पर नहीं, गोली मारने वाले पर झपटता है । इसी प्रकार ज्ञानी पुरुष दुःख के मूल पर प्रहार करते हैं; दुःख के निमित्तों पर नहीं ।
दुःख से बचना चाहते हैं, कारणों से नहीं
यों तो संसार के समस्त प्राणी दुःख से बचना चाहते हैं । वे चाहते हैं, जरा-सा भी दुःख हम पर न आए । परन्तु अधिकांश मानव दुःख से बचना तो चाहते हैं, मगर दुःख के कारणों का परित्याग नहीं करते । अतएव द्वितीय अध्ययन में 'वज्जियपुत्र अर्हतषि' इसी तथ्य को अभिव्यक्त करते हैं
जस्स भीता पलायंति जीवा कम्माणुगामिणो । तमेवादाय गच्छति, किच्चा दिन्ना व वाहिणी ॥१॥
अर्थात् – कर्मानुगामी आत्मा जिस दुःख से भयभीत होकर भागते हैं, उसी दुःख को अज्ञानवश ग्रहण करते हैं । जिस प्रकार युद्ध से भागती हुई सेना पुनः शत्रु के घेरे में फँस जाती है । इसी प्रकार दुःख से बचने के