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जीवन : एक संग्राम ७६ कि जो वत्ति मन में जागी, उसे तप्त और सन्तुष्ट करो, तब अपने-आप तुम्हें समाधि और शान्ति प्राप्त होगी। परन्तु वे यह भूल जाते हैं कि जैसे फुटबाल या गेंद को दबाये जाने पर वह द्विगुणित वेग से उछलने लगती है, उसी प्रकार जिस अशुभ वृत्ति को दबाया जाता है, उससे उस वृत्ति की पूर्ति कर देने से वह शान्त नहीं होती, वह द्विगुणित वेग से उछलती है।
___ अशुभ वृत्तियों में कामवृत्ति सबसे प्रबल है, उसी का संकेत अर्हतर्षि वल्कलचीरी ने दो बार किया है। गीता में काम को महाशत्रु मानकर उसे नष्ट करने की प्रेरणा दी गई है
'जहि शत्रु महाबाहो ! कामरूपं दुरासदम् ।' हे भुजबली अर्जुन ! अत्यन्त दुर्धर्ष कामशत्रु को नष्ट करो।
काम के दो अर्थ जैन शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं। इच्छाकाम और मदनकाम । इनमें से मदनकाम की प्रतीक नारी है। उसके साथ जूझकर विजय प्राप्त करने का भी संकेत किया गया है। काम के द्वितीय अर्थ के अनुसार इच्छाकाम पर भी अंकुश रखने और उससे सतत संघर्ष करने की हिदायत भी अर्हतर्षि ने इन शब्दों में दी है
णिरंकुसे व मातंगे, छिण्णरस्सी हए वि वा । णाणप्पग्गहापब्भट्ट, विविधं पवते णरे ॥४॥ णावा अकण्णधारा व सागरे वायुणेरिता । चंचला धावते णावा सभावाओ अकोविता ॥५॥ मुक्कं पुप्फ व आगासे, णिराधारे तु से परे। दढ सुब्बणिबद्ध तु विहरे बलवं विहि ॥६॥
-अंकुशविहीन हाथी और लगाम से रहित घोड़े, अथवा ज्ञानरूप लगाम से भ्रष्ट मनुष्य भी नाना रूप में भाग-दौड़ करता है, और विनाश को प्राप्त होता है।
-जैसे मल्लाह से रहित नौका वायु के थपेड़ों से टकरा कर समुद्र में चंचल व लक्ष्यहीन होकर इधर-उधर दौड़ती है। इसी प्रकार मार्गदर्शक अथवा व्रत-नियम से रहित मूढ मानव की जीवननैया भी स्वभावतः डाँवाडोल हो आती है। वह भी अशुभ वृत्तिरूपी वायु से प्रेरित होकर इधर-उधर भटकती है।
- इसी प्रकार आकाश में फैंका हुआ फूल, निराधार मानव और दृढ़