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पहला अध्ययन विनयत (विनय का विधान प्रकार और महत्त्व )
श्लोक १ विनय-प्ररूपण की प्रतिज्ञा ।
२४, २५ २६
२ विनीत की परिभाषा ।
३ अविनीत की परिभाषा ।
४ अविनीत का गण से निष्कासन ।
५ अज्ञानी भिक्षु का सूअर की तरह आचरण ।
६ विनय का उपदेश ।
७ विनय का परिणाम ।
८ भिक्षु का आचार्य के पास विनय और मीन-भाव से सार्थक पदों का अध्ययन ।
६ क्षमा की आराधना और क्षुद्र व्यक्तियों के साथ संसर्ग-त्याग ।
१० चण्डालोचित कर्म का निषेध |
अधिक बोलने का निषेध ।
स्वाध्याय और ध्यान का विधान ।
श्लोक-विषयानुक्रम
११ ऋजुता तथा भूल की स्वीकृति।
१२ अविनीत और विनीत घोड़े से शिष्य के आचरण की तुलना ।
१३ अविनीत शिष्य द्वारा कोमल प्रकृति वाले आचार्य को भी क्रोधी बना देना ।
विनीत शिष्य द्वारा प्रचण्ड प्रकृति वाले आचार्य को भी
प्रसन्न करना ।
१४ बोलने का विवेक ।
सूत्र १-३ परीषह निरूपण का उपक्रम और परीषहों का नाम निर्देश |
श्लोक १ परीषह - निरूपण की प्रतिज्ञा ।
२, ३ क्षुधा - परीषह
४,५ पिपासा- परीषह ।
६, ७ शीत परीषह ।
८६ उष्ण-परीषह ।
१०, ११
दंशमशक-परीषह । १२,१३ अचेल - परीषह ।
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भाषा - दोषों के वर्जन का उपदेश ।
अकेली स्त्री से आलाप-संलाप का निषेध ।
२७ अनुशासन का स्वीकार ।
२८, २६ प्रज्ञावान् मुनि के लिए अनुशासन हित का हेतु ।
३० गुरु के समक्ष बैठने की विधि ।
३१ यथासमय कार्य करने का निर्देश ।
३२-३४ आहार सम्बन्धी विधि-निषेध ।
३५ आहार का स्थान और विधि ।
असाधु, अज्ञानी के लिए अनुशासन द्वेष का हेतु ।
४१
४२
१५, १६ संयम और तप द्वारा आत्म-दमन ।
१७ आचार्य के प्रतिकूल वर्तन का वर्जन ।
१८, १६ आचार्य के प्रति विनय-पद्धति का निरूपण ।
२०-२२ आचार्य द्वारा आमंत्रित शिष्य के आचरण का निरूपण । २३ विनीत शिष्य को ही सूत्र, अर्थ और तदुभय देने का विधान ।
दूसरा अध्ययन : परीषह - प्रविभक्ति (श्रमण-चर्या में होने वाले परीषहों का प्ररूपण)
३६ सावद्य भाषा का निषेध ।
३७ विनीत और अविनीत शिष्य की उत्तम और दुष्ट घोड़े
के साथ तुलना ।
३८ पाप-दृष्टि मुनि के द्वारा अनुशासन की अवहेलना । ३६ अनुशासन के प्रति दृष्टि-भेद ।
४० न आचार्य को और न स्वयं को कुपित करने का उपदेश ।
१-२७
कुपित आचार्य को प्रसन्न करने का उपक्रम ।
व्यवहार धर्म का पालन करने वाले मुनि की सर्वत्र प्रशंसा ।
४३
आचार्य के मनोनुकूल वर्तन का उपदेश ।
४४ विनीत द्वारा आदेशानुसार कार्य सम्पन्नता ।
४५ विनीत की कीर्ति और आधारभूतता ।
४६ विनय से पूज्य आचार्य की कृपा और श्रुत ज्ञान का
लाभ ।
४७
विनीत की सर्व गुण सम्पन्नता।
४८ विनयी के लिए मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन ।
अरति परीषह ।
स्त्री - परीषह । चर्या - परीषह ।
१४, १५ १६, १७ १८, १६
२०,२१ २२, २३
आक्रोश- परीषह ।
२४, २५ २६, २७ २८,२६
वध - परीषह ।
याचना-परीषह । ३०,३१ अलाभ- परीषह ।
निषीधिका परीषह ।
शय्या परीषह ।
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पृ० २८-६२
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