Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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त्रि
48षष्टांग झाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
__उणसिप्पोवगएहिं जियपरिस्समेहिं अम्भंगण परिमहणुञ्चलणकरण गुणनिम्माएहि;
अट्ठिसुहाए, तया सुहाए, रोमसुहाय, मांससुहाए चउविहाए संवाहिएसमाणे अवगय परिस्सम्मेनरिंदे, अणसालाओ पडिनिक्खमई २ ता जेणव मंजणघरे तेणेब उवागच्छइ २ ता मंजणघरं अणुपविस्इ २ ता समुत्तजालाभिरामे विचित्तमणिरयण कोहिमतले रमाणिजे, हाणमंडसि गाणामणिरयणभत्ति.
चित्तसि ण्हाण पीढंसि सुहं निसणे, सुहोदगेहिं, पुप्फोदगेहिं, गंधोदएहिं, सुद्धोदएहिं कलाओं में निपुण, परिश्रम को जीतनेवाले, अभ्यंगन, परिमर्दन, उदानवकरन इन के अभ्यासवाले पुरुषों से अस्थि, सचा, रोम व मांस इन चार के सुख के लिये तेल चर्म में मत्र मर्दन कराया हुचा राजा श्रेणिक परिश्रम रहित हुवा. फीर वह व्यायामशाला में से नीकलकर मंजनगृह में गया और उस में प्रवेश किया. वहां पर प्रवेश करके मालियों सहित अटारी जाली से भाभिराम, विचित्र मणि रत्नों की भिधि के तलेवाला व रमणीय स्तान मंडप में विविध प्रकार के चित्रों से चित्रित स्नान करने के पाट पर सुखपूर्वक बैठे. सुख उत्पन्न करे वैमा पानी, पुष्पोदक, गंधोदक व शुद्धोदक से वारंवार कल्याणकारी श्रेष्ट मज्जन विधि से श्रेणिक रामाने मज्जन किया, मजन करते बहन प्रकार के कौतुक कीये फोर कल्याणकारी
उत्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
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