Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावाथे
488+-पटांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
रणा एवंवृत्तासाचा हट्टातुट्ठा जाय पञ्चपिह ॥ २३ ॥ तरणं सेनियराया कल्लंपाउप्पभाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलमिलयभि अह पंडुरेप्पभाए रत्तासोगपगास किं सुय सुयमुह गुंजद्ध बंधुजीवे वगवारावयचलणणयण परहुय सुरतलोयण जासुमन - कुसुम जलिय जलतरणिय कलस हिंगुलय निगर रुवाइरेगरहंत सिसिरीए दिवागरे अहकमेणं उहिए, तस्तदिणकर परपरोयारपारर्द्धमिअंधयारे बालातव कुंकुमेण खचियंमिजीवलोए, लोणविसावास विगतवितदसिमिलाए
अब
तुष्ट व आनंदित हुआ यावत् सब कार्य करके श्रीक राजा को उनकी आज्ञा पीछी देदी || २३ || एक घडी रात्रि रहते विकसित कमल की कोमल पांवडियों व हरिण | कालीयार विशेष ] के नेत्रों [ निद्रा रहित होने से ] विकमित हुवे हैं जिन में ऐसी उज्वल प्रभात में रक्त अशोक प्रगने प्रकाश, पलाश के पुरुष, शुक मुख, चिरमी [ चिणोंठी ] का उपर का रक्त अर्थ भाग, बंधु जीव का रंग, बक के पत्र पारवत के नयन, को किला के रक्त लोचन, जाइ कुतुनों के समुह, जाज्वल्यमान अनि, सुवर्ण कलश व बारिक कटा हुवा हिगलु इस से भी अधिक सुशोभित लक्ष्मी वाला सूर्य यथा ऋन से उदित होते उस के मभाव से अंधकार नष्ट होने लगा, तरुण सूर्प रूप कुंकुम से मनुष्य लोक रूप पिंजर नीला लाल पीला होने
वृक्ष
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- उत्क्षिप्त (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
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