Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयान्द्रका टीका श० १३ उ० ७ सू० १ भाषास्वरूपनिरूपणम् ६९ वीतिकता भासा?' हे भदन्त किं भाषणात् पूर्वमेव भाषा भवति ? किं वा भाष्य माणा भाषा भाति ? किंवा भाषासमपव्यतिक्रान्ता-भाषासमयः निसृज्यमानावस्थातो यावद् भाषा परिणामसमयस्तं व्यतिक्रान्ताया सा भाषा भवति ? भग. वानाह-'गोयमा ! नो पुचि भासा, भासिज्नमाणी भासा, णो भासा समयवीइक्ता भासा' हे गौतम ! नो भाषणात् पूर्व भाषा भाषात्वेन व्यवहियते, मृतपिण्डावस्थायां घटवत् , अपितु भाष्यमाणा-निसर्जनवस्थायां वर्तमाना भाषा भाषात्वेन व्यवाहियते घटावस्थायां घटस्वरूपवत , नो या भाषासमयव्यतिक्रान्ता भाषा भाषात्वेन व्यवहतुं शक्यते घटसमयातिक्रान्तघटवत् स्फुटिते घटे कपाला. चाहिये ? अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'पुद्धि भंते ! भासा, भासिज्जमाणी भासा, भासासमयवीतिकता भासा' हे भदन्त ! भाषण से पहिले भाषा होती है, या जिस समय वह बोली जा रही होती है उस समय वह भाषा होती है, अथवा भाषण कर चुकने बाद के समय में वह भाषा होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! नो पुब्धि भासा, भासिन्जमाणी भासा, णो भासासमयवीइकता भासा' हे गौतम ! भाषण के पहिले भाषा भाषारूप से व्यवहृत नहीं होती है। जैसे मृपिण्ड अवस्था में घट का व्यवहार नही होता है । अपितु निस जनावस्था में वर्तमान भाषारूप से व्यवहत होती है। जैसे घटावस्था में घटस्वरूप घटरूप से व्यवहृत होता है। इसी प्रकार भाषा समय का व्यतिक्रान्त करनेवाली भाषा भाषारूप से व्यवहृत नहीं होती है,जैसे घट समय को अतिक्रान्त करनेवाला घट घटरूप से व्यवहृत नहीं होता है।
गौतम स्वामीना प्रश्न-“ पुव्विं भंते ! भासा, भासिज्जमाणी भासा, भाससमयवीतिकता भासा ?" लगवन् ! सानां ५i भाषा३५ હોય છે? કે જયારે તે બેલાતી હોય છે, ત્યારે ભાષા રૂપ હોય છે ? કે ભાષણ થઈ ગયા પછીના સમયમાં તે ભાષારૂપ હોય છે?
महावीर प्रभुनी उत्तर-" गोयमा !" उ गौतम ! “नो पुर्वि भामा, भासिज्जमाणी भासा, णो भासासमयवीइकता भासा" मापन। ५२ai બોલાયા પહેલાં) ભાષાને ભાષારૂપ ગણી શકાતી નથી. જેમાં માટીના પિંડને ઘડા રૂપે ઓળખી શકાતું નથી, તેમ ભાષણ પહેલાંની ભાષા ભાષા રૂપે ઓળખાતી નથી જેવી રીતે ઘડાના આકારે રહેલી વસ્તુને જ ઘડે કહેવાય છે, એજ પ્રમાણે નિસર્જનાવસ્થામાં વર્તમાન ભાષાને જ ભાષા કહેવાય છે. જેવી રીતે ઘડાના સમાપને વ્યતિકાત કરનારા ઠીંકરાને ઘડો કરી શકાતો નથી, એજ પ્રમાણે ભાષા સમયને વ્યતિકાન્ત કરનારી ભાષાને ભાષારૂપ ગણી શકાતી નથી.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧