Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे भगवानाह-'जाव नियमा छदिसि फुसइ' यावत् नियमात् षड्दिर्श स्पृशति, तत्रोदकान्तो नद्याधुदकान्त पोतान्तं नौकाया अन्तभागं स्पृशति, अत्रोच्छायापेक्षया उर्धाधःप्रदेशौ कल्पयित्वा उधिोदिशोः स्पर्शना ज्ञातव्याः, अथवा जले निमज्जनानन्तरमूर्धाधोदिशोरुच्छायापेक्षया स्पर्शना वाच्या । 'छिदंते दूसंत' इति छिद्रान्तो दृष्यान्तं स्पृशति, दूष्यस्य-वस्त्रस्यान्तः, दूष्यान्तः, तं स्पृशति, अत्रापि वस्त्रस्योच्छ्रायमपेक्ष्य षट्स्वपि दिक्षु स्पर्शनायाः भावना करणीया, 'छायंते आयवंत' छायान्त आतपान्तं स्पृशति, अत्र छायाभेदेन षडदिग भावना एवं कर्तव्या-आतपे गगनवर्तिपक्षिप्रभृतिद्रव्यस्य या छाया तदन्तश्छायान्तः है ? छेदका अन्त वस्त्र के अन्तको स्पर्श करता है ? छाया का अन्त आतपके अन्त को स्पर्श करता है? तो इस का उत्तर देते हुए भगवान् कहते हैं कि हां गौतम ! यावत् नियमसे छहों दिशाओं का स्पर्श करता है। नदी आदि के पानीका अन्त नौकाके अन्तभागका स्पर्श करता है। यहां पर उच्छ्राय-उँचाई की अपेक्षा से ऊर्ध्वप्रदेश और अधःप्रदेशों की कल्पना करनी चाहिये। इस प्रकार को कल्पनासे ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा की स्पर्शना जाननी चाहिये । अथवा जल में डूबनेके बाद ऊर्चदिशा और अधोदिशा की स्पर्शना उच्छायकी अपेक्षासे कहनी चाहिये । “छिदंते दूसंतं " छिद्रान्त दूष्यान्त का स्पर्श करता है। दृष्य शब्द का अर्थ वस्त्र है । वस्त्र का अन्तभाग दृष्यान्त है। यहां पर भी वस्त्र की, ऊँचाई की अपेक्षा कर के छहों दिशाओं में स्पर्शनाकी भावना करनो चाहिये। छाया का अन्त आतप के अन्तका स्पर्श करता है। यहाँ छाया के भेदसे ६ दिशा की भावना इस प्रकार से करनी चाहिये-आतपमें અન્તભાગને સ્પર્શ કરે છે? છાયાને અન્તભાગ તડકાના અન્તભાગને સ્પર્શ रेछ ? तेन। उत्तर भगवान २॥ प्रमाणे मापे छ-७, गौतम ! यावत् छये દિશાઓને સ્પર્શ કરે છે. તેમાં પાણીને અંતભાગ જહાજના અંતભાગને સ્પર્શ કરે છે. અહીં ઊંચાઇની અપેક્ષાએ ઊર્ધ્વ પ્રદેશ અને અધઃપ્રદેશની કલ્પના કરવી જોઈએ. अथवा माया पछी अशा अने मघाहिशानी २५शना उच्छाय (या) नी अपेक्षा की नसे. " छिदंते दुसत" छिद्रान्तमा प्यान्तनागनी २५ रेछ "य" सेटले "व" वखना मतमान प्यान्त ४ छ. मडी વસ્ત્રની ઊંચાઈની અપેક્ષાએ એ દિશાઓમાં સ્પર્શનાની ભાવના કરવી જોઈએ. છાયાનો અંતભાગ તડકાના અંતભાગને સ્પર્શ કરે છે. અહીં છાયાના ભેદથી છ દિશાની છાયાને ભાવ આ પ્રમાણે સમજે-તડકામાં આકાશમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨