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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक ऐरवत क्षेत्र में एक समय में एक युग में दो अर्हत् वंश उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी तरह चक्रवर्ती वंश, इसी तरह दशार वंश । जम्बूद्वीपवर्ती भरत ऐरवत क्षेत्र में एक समय में दो अर्हत् उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। इसी तरह दशार और चक्रवर्ती । इसी तरह बलदेव और वासुदेव दशार वंशी-यावत् उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे।
जम्बूद्वीपवर्ती दोनों कुरुक्षेत्र में मनुष्य सदा सुषम-सुषम काल की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर उनका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा-देवकुरु और उत्तरकुरु । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषम काल की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा-हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषम दुःषम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए विचरते हैं, हेमवत और हिरण्यवत । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य सदा दुःषम सुषम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका अनुभव करते हुए रहते हैं, यथा-पूर्व-विदेह और अपर-विदेह । जम्बूद्वीपवर्ती दो क्षेत्रों में मनुष्य छ: प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं यथा-भरत और ऐरवत। सूत्र- ९०
जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा प्रकाशित होते थे, होते हैं और होते रहेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपते रहेंगे। दो कृतिका, दो रोहिणी, दो मृगशिर, दो आर्द्रा इस प्रकार निम्न गाथाओं के अनुसार सब दो-दो जान लेने चाहिए। सूत्र- ९१
दो कृतिका, दो रोहिणी, दो मृगशिर, दो आर्द्रा, दो पुनर्वसु, दो पुष्य, दो अश्लेषी, दो मघा, दो पूर्वाफाल्गुनी, दो उत्तराफाल्गुनी। सूत्र- ९२
दो हस्त, दो चित्रा, दो स्वाती, दो विशाखा, दो अनुराधा, दो ज्येष्ठा, दो मूल, दो पूर्वाषाढ़ा, दो उत्तराषाढ़ा, दो अभिजित । सूत्र- ९३
दो श्रवण, दो धनिष्ठा, दो शतभिशा, दो पूर्वा भाद्रपादा, दो उत्तरा भाद्रपादा, दो रेवती, दो अश्विनी और दो भरणी। सूत्र- ९४
अट्ठाईस नक्षत्रों के देवता-१ दो अग्नि, २. दो प्रजापति, ३. दो सोम, ४. दो रुद्र, ५. दो अदिति, ६. दो बृहस्पति, ७. दो सर्प, ८. दो पितृ, ९. दो भग, १०. दो अर्यमन्, ११. दो सविता, १२. दो त्वष्टा, १३. दो वायु, १४. दो इन्द्राग्नि, १५. दो मित्र, १६.दो इन्द्र, १७. दो निक्रति, १८. दो आप, १९. दो विश्व, २०. दो ब्रह्मा, २१. दो विष्णु, २२. दो वसु, २३. दो वरुण, २४. दो अज, २५. दो विवृद्धि, २६. दो पूषन्, २७. दो अश्विन, २८. दो यम।
अट्ठासी ग्रह-१. दो अंगारक, २. दो विकालक, ३. दो लोहिताक्ष, ४. दो शनैश्चर, ५. दो आधुनिक, ६. दो प्राधुनिक, ७. दो कण, ८. दो कनक, ९. दो कनकनक, १०. दो कनकवितानक, ११. दो कनकसंतानक, १२. दो सोम, १३. दो सहित, १४. दो आससन, १५. दो कार्योपग, १६. दो कर्बटक, १७. दो अजकरक, १८. दो दुंदुभग, १९. दो शंख, २०. दो शंखवर्ण, २१. दो शंखवर्णाभ, २२. दो कंस, २३. दो कंसवर्ण, २४. दो कंसवर्णाभ, २५. दो रुक्मी, २६. दो रुक्मीभास, २७. दो नील, २८. दो नीलाभास, २९. दो भास, ३०. दो भासराशि, ३१. दो तिल, ३२. दो तिल-पुष्यष्पवर्ण, ३३. दो उदक, ३४. दो उदकपंचवर्ण, ३५. दो काक, ३६. दो काकान्ध, ३७. दो इन्द्रग्रीव, ३८. दो धूमकेतु, ३९. दो हरि, ४०. दो पिंगल, ४१. दो बुध, ४२. दो शुक्र, ४३. दो बृहस्पति, ४४. दो राहु, ४५. दो अगस्ति, ४६. दो माणवक, ४७. दो कास, ४८. दो स्पर्श, ४९. दो धूरा, ५०. दो प्रमुख, ५१.दो विकट, ५२. दो विसंधि, ५३. दो नियल्ल, ५४. दो पदिक, ५५. दो जटिकादिलक, ५६. दो अरुण, ५७. दो अग्रिल, ५८. दो काल, ५९. दो महाकाल, ६०. दो स्वस्तिक, ६१. दो सौवस्तिक, ६२. दो वर्धमानक, ६३. दो प्रलम्ब, ६४. दो नित्यालोक, ६५. दो नित्योद्योत, ६६. दो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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